________________
निरगल बात से कोई भी विद्वान सहमत नहीं है।
दूसरा पक्ष अब एक पक्ष सम्ग के विद्वानों में ऐसा भी खड़ा होगा? कि जो यह कहता है कि 'षट् माण्डागम १३ सूत्र में संजर पर इस लिये होना चाहिये कि वह मूत्र द्रव्य बी का कथन करने बाबा नहीं है किंतु भाव बोका निरूपको और भाव वेद मोरे १४ गुणस्थान बताये गये हैं। इसके विरुद्ध समाज के कुछ मनुभवी विद्वानों एवं पूज्य स्यागियों का ऐसा कानात बां सत्र भाव वेद निरूपक नहीं किंतु द्रव्य त्री काही निरूपको मतः उसमें सजद पर नहीं हो सकता है उसमें सजद पर जोर देने से द्रव्यको को मोक्ष एवं श्वेताम्बर मान्यता सह सिखरो गी। तथा श्री षट् सएडागम सिदान्त शास्त्र भी उसी श्वेताम्बर मान्यता का साधक होनेसे उसी सम्प्रदाय का समझा जायगा।
इस प्रकार विद्वानों में समापन पर विचार न होरहा था, इसी बीच में वान पत्र निमारक कमेटी द्वारा नियुक्त किये गये संशोषक पं० वापरजी शास्त्री ने उस तान पत्र में संबद परस सूत्र में खुदवा समा। इस कवि से बो श्वेताम्बर मान्यता दी बह दिगम्बर शाब में पब स्थायी बन चुको भविष्य में कवि से दिगम्बर जैनधर्म पर पूरा भावात एवं दिगम्बर शाखों परठापाव समझना चाहिये। पं० खापन जीको प्रयोधन के सिवा ऐसा कोई अधिकार नहीं था कि इस fara