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बहुत पान और दूर व्यय के साथ मुद्रित कराकर सर्वत्र भेज दिये हैं। ये सब बातें समाज के सामने पाचुका है अतः उनपर कुछ भी लिखना व्यर्थ ।।
परस्तु वहां पर विचारणीय शत यह है कि मेरा जान जोकमत "शेतार मार दिगम्बर दोनों सम्मायों में कोई मौखिक (लास-मून भूत ) भंद नही, द्रव्य स्त्री मोक्ष जा सस्तीबादि बातें शेताम्बर मानते हैं हिगार शस्त्र भी इसी बात को स्वीकार करते " उसके प्रमाण में ये बासे पाचीन शास्त्र इन्ही पट खसाग सिद्धान्त शास्त्रों को मापार बताते , नका कहनाक"धवन सिद्धान्त के ६३ सूत्र में संयत पर होना चाहिये और वह सब इन्य स्त्रो के हो गुणस्थानों का प्रतिपादक, बस उस संयत पद विशिष्ट सूत्र से द्रव्य स्त्री २१४ गुणस्थान सिकहो जाते हैं।" इस कथन को पुष्टि में प्रोफेसर साहब ने उस सूत्र में संयत पद जोड़ने की बहुत इच्छा की बी परन्तु संशोधक विद्वानों में विवाद खड़ा हो जाने से ये सूत्र में तो संभव पर नहीं जोड़ सके किंतु उस सूत्र के हिन्दी अनुवाद में भोंने संबद पोड़ाही दिया । जो सिद्धाना शास्त्र भोर दिगम्बर जैन धर्म के सर्वथा विपरीत है। इन्हीं प्रोफेसर साहेब ने इस युग पाचार्य प्रमुख स्थानो कन्द को इसलिये मप्रमाण पाया कि पाने बारा रचित शास्त्रों में व्यस्त्री
पांच गुणस्तान से ऊपर के संयत गुणस्थान नहीं बताते हैं। मो.सोसारको समझोई निराधार एवं हेराम्य