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पूजा ) से प्रतपंचमी नाम पड़ा है। रे शास्त्र सिद्धनत शास्त्र, उनकी रचना अंग-शास्त्रों के एकदेश माता पाचार्यों द्वारा की गई , अतः उन शास्त्रों के पढ़ने का अधिकार गृहस्थ को नहीं है। ऐसा हम अपने ट्रेक्ट में प्रति कर चुके हैं, जब से उनका मुद्रण होकर गृहस्थों द्वार। पठन-पाठन चालू हुमा है, सभीसे ऐसी अनेक बातें विवाद कोटि में पा चुकी हैं, जिनसे दिगम्बर जैन धर्म का मून घात होने की पूरी संभावना है।
अनधिकृत विषय में अधिकार करने का ही यह दुष्परिणाम सामने वा चुकी कि 'एमोकार मन्त्र सादि, द्रव्य स्त्री उसी पयाय से मान जाने को अधिकारिणी है, सबस्त्र मोक्ष हो सकती है। केवली भगवान कबज्ञाहार करते हैं। ये सब बात उक्त पदखएडागम सिद्धान्त शास्त्र मादि के प्रमाण बताकर प्रगटकी गह, परन्तु गह इन सिवान्त शास्त्रों का पूरा र दुरुपयोग किया गया
और उन बन्दनीय सिमान्त शास्त्रों के नाम से समाज को धोखा दिया गया है। उन शास्त्रों में कोई ऐसी बात सबंधा नहीं पाई जा सकती है जिसस दिगम्बर धर्म में बाग उपस्थित हो । बता समाज के विशिष्ट विद्वानों ने इन सब बातों सपने लेखों व ट्रेक्टों द्वारा सप्रमाण निरसन कर दिया है। वर्तमान के बीच रागी महर्षियों ने भी अपना अभिमद प्रसिद्ध कराया है। हमने भी उन बातों के साबन में एक विस्तृत ट्रैक्ट लिलाव ट्रैक्ट और अभिमत धर्म-परायण दि.जैन बम्बई पंचायत ने