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मामएणं पत्रसमस चेदि तिरिक्ष माला दुझियमात्र नही मियत पेरि।
(गो० जी० गाws) अथ पर किया जा चुका है। इन भेो मापार पर बालाप बेदों की अपेक्षा से पृषक २ द्रव्य श्री द्रव्य पुरुष में गुरुसन बिरान से नहीं कहे जाते हैं जिससे कि द्रव्य बी. पांच गुणशान बगये जाते। जैसा कि भारवेदी परिश्तों का भामापाधिकार के नामोल्लम्ब से प्रभाकिया जाता है। किन्तु पयांत मनुष्य के सम्बन्ध के साथ वहां तक गुणस्थान सकते
सब गिनाये जाते हैं। इसीलिये सोवेद केलय में पर्याप्त मनुष्य के १४ गुणस्थान बनाये गये हैं। भाववेद की दृष्टि से भी
भी १४ गुणस्थान गिनाये गये हैं। भामापाधिकार की इस कुशी को - पर्याप्त अपर्याप्त और सामान्य मतीनों विषया को-समझनेने से फिर कोई प्रश्न खड़ा नहीं होता है। जैसेमागणामों में बादि की चार मागंणायें मोर योगमन्वय यह पर्याप्तियां द्रव्य शरीर को ही निरूपको यह बात समझ लेने पर १२.३२ सूत्रों और संया पाकेषभावका निर्णीत सिवंत समझ में था बाता है ठीक उसी प्रकार मातापाधिकार को उपयुक कुत्री को ध्यान में लेने से व्यसो पांच गुणस्थान क्यों नहीं कहे गये, भावना के १४ गुणवान क्यों बनाये गये। ये सब प्रान फिर नीते हैं।
'पासापाधिकार द्वारा भावकी सिलिनी रेस