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महेक उपर कर चुके हैं अतः फिर दुाराना व्यर्थ है।
माखापाधिकार के सम्बन्ध में एक बात का हम ध्यान दिला देना चाहते हैं कि बौदहमार्गणा, चौदागुणस्थान, वह पर्याप्ति परा प्राण, नगर संज्ञायें और उपयोग न बीसों रूग्णाबी का पषा सम्भव परस्पर समन्वय ती मानापाधिकार में किया
आवाहै। इस लिये वहां पर दम्य गैर भाव रूप से भित्र २ विवहा नहीं जाती फितु या सम्मन ज. तक जो प्रम्य चौर भाव रूप में बन सकता है वहां तक उन सबको सहा कर गिनाया जाता है । इसलिये मानापारिकार में बी वर के साथ चोदा गुणस्थान भी बताये गये हैं और साथ की बीवर पपयांत पालाप में तीथे गुणस्थान निषेध भी कर दिया है वह चौथा गुणस्थान लीवर के पर्याप्त में तो
हो सकता है । इसी से द्रव्यकी के गुणस्थानों ब परि
हो जाता है। पालापाविर पृथक २ विवेपन नही परसा उसका नाम ही भामाप है । इसलिये बोवेद के साथ पर्याप्त समस्या में भारद से सम्भव होने वाले पौरह गुणस्थान भी इसमें पवा दिये गये हैं।
और भी विशेष बात यह है कि पालाप सोनकहे गये है स सामान्य, दूसरा पर्याप्त, तीसरा अपर्याप्त । इसमें अपर्वात मासापके दो भर पिये गये है। सभी पापों साब गुणस्थान, मार्गणा, पाण, संसा, पयोग चाहि पटाये गये है। जैसा कि