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से होवेर विशिष्ति और सारे समान ११ सत्रगत मानुपी भावस्त्री ही है, इम्बत्री नहीं है वह पास भाप किस भाधार से करते है स्त्रीवेद विशिE तो हम भी मानते हैं इसमें क्या विरोधी? परनु सन स्त्रीवेद विशिष्ट वासों का द्रव्यावर सोने की दिव्यपुरुष शरीर इसी सिल वो बाप नहीं कर सके हैं इसके विपरीत हम तो यह सिद्ध पा चुके हैं कि वे स्त्रीबंद-विशिष्ट कोष व्यस्त्री र पाते हो । गोदारिक मिम एवं पर्यात अपर्याप्त सम्बन्धित होनेसे वहां इन स्त्रीवेद बालों का द्रव्य पुरुष शरीर नहीं माना जा सकता है।
बीरसेन स्वामी ने मानापाधिकार में मानुषी के अपर्याप्त अवस्था में चौथा गुणस्थान नहीं बताया है यह को मापन लिखना है वह भी हमें मान्य है किन्तु पाप से भावखी वेर कहते है हम व्यस्त्री वेदी प्राधार से संबताते हैं। मापने अपनी बात को सिद्धि में कोई प्रमाण एवं देख नहीं दिया है, हम सप्रमाण सिट कर चुके हैं।
मागे मापने को गोम्मटसार के पालापाधिकार का मुखोई मणुसनिए'-यह प्रमाण देकर मनुष्यणी के ये गुणस्थान में एक पर्याप्त पालाप को बताया है वो ठीक में इस बागम में कोई विरोध नहीं है परन्तु भाप को सार्थ वापसी करते हैं बर मागम-विरुद्ध पाता है उसका भय 'प्रयसी' भी है प्रमाण को सोनी जी ने दिया है उपका चरम