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पर कर चुके है अतः जहां सब बातों का समाधान किया गया है। अब यहां पुनः लिखना अनुपयोगी होगा ।
श्रीमान् पं० कुलचन्द जी शास्त्री के लेख का उत्तर
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जैन सन्देश - ० २२ अगस्त १६४६ के हू मे श्रीमान ५० फूल बन्द जी शास्त्री महोदय का लेख है। इस लेख में गोम्मटसार कर्मकांड की गाथाओं का प्रमाण देकर यहां सिद्ध किया गया है कि द्रव्य मनुष्य के भी भाव श्रीवेद का उदय हो तो भी उस द के उदय के साथ और मिश्र में चौथा गुणस्थान उसके नहीं होता है। इसकी सिद्धि में "साथी वेदविदी, मर्यादेशादेज दुभ 'सात छिदा भयदेवणिज, "इन गाथाओं का प्रमाण उन्होंने दिया है परन्तु ये प्रमाण द्रव्यकी के ही सम्बन्ध से हैं, सम्यग् जीव मरकर सम्यग्दर्शन के साथ अपर्याप्त अवस्था में द्रव्यखी.. नहीं होता है, इसी पी सिद्धि के विधायक ये गोम्मटसार कर्मकांड के प्रमाण है । यह बात की० पं० पन्नालाल जी सोनी के लेखों के उत्तर में पीछे ही स्पष्ट कर चुके हैं, उसी को पुनः यहां लिखना पिपेषण ये होगा। इन प्राणो से यह बात या सिद्ध नहीं होती है कि भाषकी वेद विधि द्रव्य मनुष्य की अपर्याप्त अवस्था में सम्यग्दृष्टि जोव पैदा नहीं होता है। ऐसा कोई पद हो तो उक शाको जो प्रगट करें। हम तो कीवेनानुत्पन्नत्यात कोल्लेन अन्नाभोवात् इत्यादि प्रमाणों से और चारो धानुपूवियों के अनुदय होने में स्पष्ट पर हुई है कि० ३६ हाये द्रव्यस्त्री के ही सम्बन्ध से है। मदः हमने जो चाप ६२-६३
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