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१२१ ht-10-1१ सत्रों में अपने लेखों में पाई पालो । सपकोई समाधान भावपकी रिद्वानों कीबोर से नही मारे।
शाखीमी ने जो यह बात fematसे पटसरसागम पायाभूत मासिभी सैनिक अन्यों में बाधार्मिकम्पों में मनुरिती राम का प्रयोग बोवेद के जय को अपेक्षा से किया गया हे मूल प्रमों में को में अध्ययन विवक्षितीनही साद पर यावां सब भी भावलोकभपेशा से ही निमित हुपा है।"
इन पायो के उत्तर में हम इतना शास्त्री जी से पूछते हैं कि 'मूल मन्थों में सर्वत्र भावी लिया जाता है म्यवेद नही लिया जाता। यह बात मापने किस मापार से कही कोई प्रमाण वो देना चाहिये । जो प्रमाण गोम्मटसार दिया है सब व्यसीहो विपादक म्षा उनका सपान करें कि इस हेतु सके द्रव्य नहीं कि भाववेक है। बिना प्रमाण
मापकी बात मान्य नहीं हो सकता है। इस विपरीत हम इस ट्रैक्ट में पटखएडागम गोम्मटसार मोर रामवासिक के प्रमाणों से वह बात भली भांति सिद्ध कर चुके हैं कि स्त्रीवर शादि वेदों का संघटन द्रव्यशरीरों में ही किया गया है। द्रव्य शरीरों को पर्याप्तता, अपर्याप्तवा भाषार परी गुणस्थानों का बवासम्भव समन्बय किया गया है। इस ट्रैक्ट पाने से मार पर्व सरहकोण को समझ लेंगे। मापने चोर दुसरे ममी भावपकी विशनों ने सरहकोण को समझानीया पणमोह में पहर समझ भी भ्रम पैदा कियारहवासमा