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इमोत्तर में संक्षेप में हम इतना लिखनाही पर्याय समझते किवाचायों ने जिस प्रकार पुरुष और स्त्रीवेरको प्रधानता से निबरसत्रों द्वारा स्पष्ट विदेषन किया है वैसा विवेचन नपुसद की प्रधानता से नहीं किया है। इसका मुख्य हेतु वह प्रतीत होता है कि जिस प्रकार पुरा और बीद बाबा लिंग चौर यानि नियत पिन सर्वजन सिख है और प्रत्यक्षा है। इस प्रारमसम्र का कोई नियत चिकित दम्ब रूप नहीं पाया जाता है क्योंकि एकद्रिय से लेकर दिय जीवों तक सभी नपुसकश है। वृक्ष बनस्पतियों में तथा एन्द्रिय से लेकर पीली जीरों में कोई नियत माकार नहीं है इसजिये नियत पिन नहीं होने से नपुंसकवेद की प्रधानता से वर्णन करना पशम्यो । जहां भाषद और द्रव्योग में एक नियत शरीर रूप है वहां नकों का कथन सूत्र द्वारा किया है। संख्या भी गिनाई गई है गैस नाव्यों की। मनुष्यों में पुरुष मोसमान कोपकमियम विन व्यक्त नहाने से द्रव्य नपुसकोत्र पृषक निदेशकों द्वारा नहीं किया गया है। पटसरसगम कार की गवतो वो सम्भव नही। बर्तमान इन विद्वानों की समझ की कमी और बहुत भारी गाती बश्य है जो महान् भाषायों की एक टीकाकारों को गलती समझ लेते हैं।
पागे सोनी जी ने सत्र में संवा शम शेना नावे सम्म में पाला
टीयों पर आपोह किया है, हम संपत राम के विषय में प वन इसी क्यो बोसों