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गो. जो० भालापाधिकार गाथा ७१७
पृष्ठ ११५२ टीका इस गाथा की संस्कृत व हिन्दी टीका में स्पष्ट लिखा कि'योनिमसंयते पर्याप्तालाप एवं बद्धायुकस्यापि सम्यग्दृष्टेःखीरयोरनुत्पत्तेः' यह कथन नियंच को की अपेक्षा से है। फिर भी माजी के समान है । और द्रव्यत्री का निरूरक है क्योंकि मायुचा कर लेने पर भी सम्यम्हष्टि कात्री और छह प्रविधियों में पंतानहीं होता है। यह इंतु दिया है, आगे सानो जा ने अपर्यानिकासु भाये सम्यस्त्वेन सह बीजनाभावात" यह राजवार्तिक का प्रमाण 'भाववेद बोवेद के उदय में द्रव्य मनुष्य के मादि के दो
गुणग्धान होते हैं। इस बात की सिद्धि में दिया परभु यह प्रमाण भी सोनी जी क मन्तव्य के विरुद्ध करबो के गुणस्थाना का हो विधान करता है, यहां पर कीद के उदय की बात भी पालकदेव ने नहीं लिखा है किन्तु सम्यक्त्व के साथ की पयाय में जन्म नहीं होता है ऐसा स्पष्ट लिखा है। इन प्रमाणों को देते हुये
सोनी जी लिखते हैं "इसनिये भावकी व्य मनुष्य के भोप. याप्त बवस्था में पहला और दूसर। ये दोको गुणस्थान होते है
यह बात सोनी जी उपर के प्रमाणों से सिद्ध करना चाहते हैं, परन्तु वे सब ही अपर्याप्त अवस्था को सिद्ध करते हैं और सी अवस्था में सम्यम् लेने का निषेध करते हैं। यह बात हम बहुत स्पट कर चुके हैं।
मागे सोनी बी ने हमसे प्रश्न किया है कि "मायके और