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को लेकर की है। प्रतिपाद्य विषय बहुत हैं और वे विनर शाहों में वर्णित हैं। हमने समस्त शाखों को देखा भी नहीं है। फिर तपः प्रभाव से उत्पन्न निर्मन सूदम क्षयोपशम के धारी महर्षियों के द्वारा रचे हुये शाखों का प्रतिपाय विषय अत्यन्त गहन और गम्भीर है, और हमारी जानकारी बहुत छोटी और स्थान है। ऐसी अवस्था में हमारा कर्तव्य है कि हम उन शास्त्रों के रहस्य को समझने में अपनी बुद्धि को सन शास्त्रों के वाक्य और पदों कीमोर ही लगावें। अर्शन ग्रन्थाशय के अनुसार ही बुद्धि का झुगाव हमें करना चाहिये। इसके विपरीत अपनी बुद्धि को भोर उन शाखों के पर-वाक्यों को कभी नहीं खींचना चाहिये । हमारी बुद्धि में जो नंगा है वही ठीक है ऐसा समझ कर उन शास्त्रों के भाशयोभपनी समझ के अनुसार जगाने का प्रयत्न करी नह! करना चाहिये । यही बुद्धि का सदुपयोग है।
जब हम इस बात का अनुभव करते हैं कि जिन भगवत्कुम. कुन्द स्वामी का स्थान वर्तमान में सर्वोपरि माना जाता है। जिन की बाम्नाय के आधार पर दिगम्बर जैन धर्म का वर्तमान अभ्युदय माना जाता है जैसा कि प्रतिदिन शास्त्र प्रवचन में बोला जाता है
मंगलं भगवान वीरो मंगलं गौतमो गणो।
मंगलं कुन्दकुमायो जैनधर्मोस्तु मंगलम ! से महान दिमाज पाचार्य शिरोमणि भगवत्कुन्दन स्वामी बाके एक देश माता भी नहीं थे । ऐसी अवस्था में हमारा मन