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परन्तु वह अपवाद तो दूसरी बात थी परमगुरु का मातापजिन मात्र था अब तो हमको इस पटखण्डागम सिद्धांत शाब की पयात अवलोकन एवं मनन करना पड़ा है। यह विशेष परिस्थिति पहली परिस्थिति से सर्वथा विभिन्न है। यह स्वतन्त्र लान है, फिर भी दिगम्बर के एवं सिद्धांत के घातक समावेश एवं वैसी समझों को दूर करने के लिये हमें बिना इच्छा के भी इन सिद्धांत शास्त्रों का अवलोकन करना पड़ा है। अन्यथा परमागम के अध्ययन की हमारी अभिलाषा नहीं है अपना क्षयोपशम दृढ़ श्राद्धिक एवं सद्भावना पूर्ण होना चाहिये फिर बिना सब प्रन्थों के अध्ययन के भी समधिक बोध एवं परिज्ञान किया जा सकता है । अध्ययन तो एक निमित्त मात्र है ऐसी हमारी धारणा है। हमने यह भी अनुभव किया है कि सिद्धांत शास्त्र बहुत गम्भीर है उनमें एक विषय पर अनेक कोटियां प्रश्नोतर रूप में उठाई गई हैं उन सबों के परिणाम तक नहीं पहुंच कर अनेक विद्वान एवं हिन्दी भाषा भाषो मध्य की कोटियों तक ही वस्तुस्थिति समझ लेते हैं । उस प्रकार का दुरुयोग भी उनकी पूर्ण जानकारी के बिना हो जाता है । अतः अनधिकृत विषय में अधिकार करना हिव कारक नहीं है मर्यादित नीति और प्रवृत्ति ही उपादेय एवं कल्याणकारी होती है। इस बात पर समाज को ध्यान देना चाहिये ।
- बुद्धि का सदुपयोग -
महर्षियों ने भिन्न २ अनेक शास्त्रों की रचना एक एक विषय