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हिप गणना में आ सकता है? सिर भी हम लोग अपने पाण्डित्य का घमण्ड करें और जनता के समक्ष दोरवाणी अथवा वोर उपदेश कहकर अपनी समझ के अनुसार ऐसा इतिहास उपस्थित करें मो शाखों के पाशय से सर्वथा विपरीत है तो वह वास्तव में विद्वत्ता नहीं है, और न ग्राह्य है। किन्तु अपनी तुच्छ बुद्धि का केवल दुरुपयोग एवं जनता का प्रतारण मात्र है।
माजकल समाज में कतिग्य संस्थायें एवं विद्वान ऐसे भी हैं जो अपनी समझ के अनुसार भानुमानिक (अनाजिया) इतिहास लिखकर प्रन्य कर्ता-भाचार्यों के समय भादि का निर्णय देने
और मागे पीछे के भाचार्यों में किन्ही को प्रामाणिक किन्हीं को अप्रामाणिक ठहराने में हो लगे हुए हैं। इस प्रकार को कल्पना पूर्ण खोज को वे लोग अपनी समझ से एक बड़ा पाविष्कार समझते हैं।
इसी प्रकार भाजपा पद्धति भी बन पड़ी है कि केवल १०. पृष्ठ का तो मूल एवं पटोय है, उसके साथ १५० पृष्ठों को भूमिका जोदकर उसे प्रसिद्ध किया जाता है इस भूमिका में ग्रंथ और प्रथकतो भाषायों की ऐसी समालोचना की जाती जिससे पंध और उसके रचयिता-पाचायों की मान्यता एवं प्रामाणिकता में सन्देह तथा भ्रम स्पन्न होता रहे।
जिन वीतराग महर्षियों ने गृहस्यों के कल्याण की प्रचुर भावना से उन अन्यों की रचना की है, उनके उस महान् उपकार और कृतज्ञता का प्रतिफल पाज इस प्रकार विपरीत रूप में दिया