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सरणी निर्दिष्ट पर्याप्त विधान से १३ सूत्र में संयत पद सिद्ध नहीं हो सकता है। क्योंकि वह द्रव्यत्री काही प्रतिपादक उक्त कम विधान से सिद्ध होता है। ___ १२ और ६३ सूत्रों में पाये हुये पयांत अपर्याप्त पदों की व्याख्या करते हुये सोनी जी स्वयं लिखते हैं-"इसलिये इन दो गुणस्थानों में मनुष्याणयां पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनों तरह की की गई है। यह ख्यान रहे कि गर्भ में पाने पर अन्तमुहूर्त
पश्चात शरीर पर्या'त के पूर्ण हो जाने पर पर्याप्तक तो जीव हो जाता है परन्तु उसका शरीर सात महीने में माठ महीने में और नौ महीने में पूर्ण होता है।"
इसकेमागे दोंने गर्भस्राव, पात और जन्मका स्वरूप निरूपण किया है। इसके मागे लिखा है कि "तीनों अवस्थामों में बह जीप चाहे मनुष्य हो चाहे मनुष्यणी हो पयांतक होता है." इस कथन से यह बात उन्हीं के द्वारा सिद्ध हो जाती है कि १२
और ३ सत्रों में जो पर्याप्तक और पर्याप्त पर मानुषियों के साथ बगे हुये हैं वे उन मानुषियों को द्रव्यत्री सिद्ध करते है, न किभावसी। क्योंकि गर्भ में पाना भोर मन्तमुहूर्त में शरीर पर्याप्ति पूर्ण होना चादि सभी बातें मानुषियों के द्रव्य शरीर कोही विधायक हैं।
पागे सोनी जी ने इसी सम्बन्ध में यह बात की है कि सूत्र में संयत पद नहीं माना जाता है वो बोके पांच गुणस्थान हो सिद्ध होंगे। परन्तु मानुषी चौरा गुणस्थान भी बताये है