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पर्चा है, वह कोई शङ्का का विषय नहीं है। और हमारा उस कथन से कोई मतभेद भी नहीं है। हां, उन्होंने जो सत संख्या पादि पाठ अनुयोगों का नाम लेकर मनुष्यगति के चारों भेदों में चौदह गुणस्थान बताये हैं सो यह बात बनकी पटखण्डागम सिद्धांत शासन से कुछ भवों तक विरुद्ध पड़ती है, क्योंकि उक्त सिद्धांत शास में प्रतिपादित पाठ अनुयोगद्वार में जो सत्मरूपणा नाम का पहला अनुयोग द्वार उसके अनुसार जोगति, इन्द्रिय काय और योग इन आदि की चार मार्गणाओं में तथा इसी योग मार्गणा से सम्बन्धित पर्याप्ति अपर्याप्तियों में गुणस्थानों का समन्वय बताया गया है वह द्रव्यवेद अथवा द्रव्यशरीर की मुख्यता से बताया गया है । वहां पर सत्प्ररूपणा मनुयोग द्वार से पर्याप्त मानुषी के पांच गुणस्थान ही बताये गये है, चौदह नहीं बताये गये हैं, और न चौदह गुणस्थान उक्त चार मार्गणामों में तथा पर्याप्त अवस्था में मानुषी के सिद्ध ही हो सकते हैं जैसाकि हम अपने लेख में स्पष्ट कर चुके हैं, फिर जो सन द्वार से जो मानुषी के चौदह गुणस्थान सोनी जी ने बिना किसी प्रमाण के अनुयोगों का नामोल्लेख करते हुये एक पक्ति में कार डाले हैं वह उनका कथन बागम विरुद्ध पड़ता है। इसी प्रकार उन्होंने भागे चलकर १३वें सूत्र के सअद पद रहित और सञ्जर पर सहित, ये दो विकल्प उठाकर मानुषी के चौदह गुणस्थान बताते हुये उस सूत्र में सञ्जद पद की पुष्टि की। वह भी सिद्धांव शाब से विरुद्ध है। यह बात हमने अपने पूर्व लेख में बहुत स्पष्ट कर दी है कि सत्र