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जाता है। अब मनग देना व्यर्थ प्रतीत होता है। और हमारा लेख भी बहुत बढ़ जायागा। फिर भी उनके सन्तोष के लिये एवं पाठकों की जानकारी के लिये भावपक्षी विद्वानों की उन्हीं बातों का उत्तर यहां देते हैं जो खास २ हैं और विषय को स्पर्श करती हैं।
भावपक्षी विद्वानों में चार विद्वानों के लेख हमारे देखने में पाये हैं, भी० ५० पनालाल जी सोनी, पं० फूलचन्द जी शाखी, ५० जिनदास जी न्यायतीर्थ, और पं. बंशीधर जी सोनापुर । इनमें न्या पतीर्थ पं० जिनदास जी के लेख का सप्रमाण और महेतुक उत्तर हम जैन बोधक के सम्पादक के नाते उसमें दे चुके है। मागे के उनके लेखों में काई विशेष बात नहीं है । ६० बंशीधर जी नेखों का उत्तर देना व्यर्थ है, उसका हेतु हम इस लेख मं पहले लिख चुके हैं, उसके सिवा उनके लेख सार शून्प, हेतु. शून्य एवं सम्बन रहते हैं। प्रतः पहले के दो विद्वानों के लेखों को मुख्य २ बातों का सक्षित उत्तर यहां दिया जाता है।
श्री. पं० पमालान जी सोनी महोदय का एक लेख तो मदनगज किशनगढ़ से निकलने वाले खण्डेलवान जैन हितेच्छुके ता. १६ अगस्त १९४६ मा में पूरा छपा है । उस लेख का बहुभाग कजेवर तो मनुष्य गति के वर्णन, आठ अनुयोग द्वार, पदय उदीरण सत्व भाविषय, मनुष्य के चार भेद, द्रव्य सी और मानुषी (भावसी) के गुणस्थानों में भेद, धादि नियमित बातों के नामल्लेख से ही भरा हुमाहै। वह एक चौबीसठाणा जैसी