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- भावपची विद्वानों के लेखों का उत्तरयद्यपि हमने ऊपर भी पटखण्डागम जीवस्थान - सल. रूपण - धवल सिद्धांत के अनेक सूत्र और धवला के उद्धरण देकर यह बात निविवाद एवं निरूप में सिद्ध कर दी है कि एक सिद्धांत शास्त्र में द्रव्यवेद का भी बन है। और हमें सूत्र में द्रव्य का काही कथन है अतः उस सूत्र में 'संजद' पद जोड़ने से द्रव्य की के चौदह गुणस्थान सिद्ध होंगे, तथा उसी भव से उसके मोक्ष भी सिद्ध होगी । अतः उस सूत्र में 'सकुद' पद सबैथा नहीं हो सकता
। इस विशद एवं सप्रमाण कथन से उन समस्त विद्वानों की सब प्रकार की शङ्काओं का समाधान भले प्रकार हो जाता है ज कि इस पटखण्डागम सिद्धांत शास्त्र को केवल भाववेद का हो निरूपक बताते हैं तथा उसे द्रव्यवेद का निरूपक सबंधा नहीं बताते हैं उन्होंने जितने भी प्रमाण गोम्मटसार आदि के भाववेद की पुष्टि के लिये दिये हैं वे सब द्रव्यवेद विधायक प्रमाण हैं । उन प्रमाणों से हमारे कथन की ही पुष्टि होती है। और यह कभी त्रिकाल में भी नहीं हो सकता है कि घटखण्डागम के विरुद्ध गोम्मटसार का विवेचन हो। क्योंकि गोम्मटसार भी तो श्री षटखण्डागम के आधार पर ही उसका संक्षिप्त सार है । भावपक्षी विद्वान उस गोम्मटसार के भी समस्त कथन में द्रव्यवेद का अभाव बताते हुये केवल भाववेद का प्रतिपादक उसे बताते हैं सो उनका यह कहना भी गोम्मटसार के कथन को देखते हुये प्रत्यक्ष बाधित है । मदः उनके लेखों का उत्तर हमारे विधान से सुतरां हो