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संबत पद सूत्र में देने से सिद्ध हो जाते हैं।
इसके लिये हमारा यह समाधान है कि इस सत्र में पर्याप्तक पद के निर्देश से मानुषी से द्रव्य सीब हो.प्राण है। अन्यथा आपकी व्याख्या- 'गर्भ और अन्तर्मुहूर्त में शरीर की पूर्णता की कैसे बनेगी और द्रव्य शरीर के कारण पांच गुणस्थान ही स्त्री के इस सूत्र द्वारा मानना ठीक है। संयत पर देना यहां पर द्रव्य स्त्री का मोत साधक होगा। परन्तु भागे वेदादि मागेणामों में जहां योग और पर्याप्तियों का सम्बन्ध नहीं है तथा केवन भौयिक भावों का हो गुणस्थानों के साथ समन्धय किया गया है वहां पर मानुषी के (भावत्री) के चौदह गुणस्थान बताये हो गये हैं उनमें कोई किसी को विरोध नहीं है। और वहां पर उन सत्रों में ही भनिवृत्ति करण एवं प्रयोग केवली पर पड़े ये हैं, इसलिये यहां ६३ सूत्र में संयत पर जोड़े बिना भाव मानुषी चौदह गुणस्थान केसे सिद्ध होंगे। ऐसी मारा करना भी व्यर्थ ठहरती है। यहां यदि उन सूत्रों में भयोग केवली मादि पद नहीं होते तो फिर कहां से अनुचि मानेगी ऐसी शश भी होती। यदि एवं सूत्र में संयत पर दिया जायगा तो यह भारी दोष अवश्य पावेगा कि द्रव्यत्री के गुणस्थानों का पटखएडागम में कोई सत्र नहीं रहेगा। जो कि सिद्धांत शासके अधूरेपन सूबा होगा। और अंगे-देशमावा भूतबनि पुष्पाजीमी का मो योजक होगा फिर पर्याप्ति अपर्याप्त पदों का निवेशही संयत पद का सम सूत्र में सर्वथा वाधक है। भवा पहला पाठही