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गया है। इस वह मानते हैं या नहीं ? यदि मानते हैं तो वेदमार्गण का कथन नहीं होने पर भी वेद की विवक्षा में उन्हें उस सूत्र को द्रव्य मनुष्य का विधायक मानना पड़ेगा। यदि वैसा वे नहीं मानने हैं नो क्या वे धवन सिद्धांत के शरीर निष्पत्ति-मनिष्पत्ति रूप, पयामि अपर्याप्ति के अर्थ का प्रत्यक्ष-अपलार करनेवाले नहीं ठहरेंग: अवश्य ठरेंगे। इसका भी स्वनासा करें। ___ जब सत्र वे भाववेद की ही मुख्यता मानते हैं तब उनके मत से योग मार्गणा में पर्याप्ति अपयामि का अर्थ क्या होगा ? यह बात भी वे खुलासा करने की कृपा करें। साथ ही यह भी खुलासा कर कि वेद मार्गगा का प्रकरण नहीं होने पर मनुष्य या मानुषी को विवक्षा में उनकी पयांत बयान अवस्था में नियत निर्दिष्ट गुणस्थानों का सङ्गठन कैसे होगा?
हमी प्रकार वां सत्र पर्याप्त मनुष्य का विधायक है। और बा गुणस्थान का विधान करता है। वह भी भाववेदी विद्वानों के मत से भाववेद मनुष्य काही विधायक है तब वहां पर भी यही दोष पाता है कि भाववेदी पुरुष भार द्रव्यही शरीर माना जाय तो चैन बाधक ? कोई नहीं। वैसी अवस्था में द्रव्यत्रो के एक सूत्र से पौदह गुणस्थान नियम से सिद्ध होंगे। यदि कोई प्रमाण उस बात को रोकने वाला हो तो भावपक्षी विद्वान सबस पहले वे ही प्रमाण प्रसिड करें हम उन पर विचार करेंगे। इस १० सत्र में भी यदि भाव और द्रव्यद दोनों हो समान हों पर्वात् एकहों तो इसमें भी हमें कोई पाप नहीं बैसा भी हो सकता