________________
है परन्तु ऐसा ही हो और ठगद बोकेर तथा भाववेद पुरुषवेद ऐसा विषम वेद नहीं हो सके इसमें भी क्या बाधक प्रमाण है? जबकि भाववेद 'पायेण समा कहि विसमा' इस गोम्मटसार की गाथा के अनुसार विषम भो होता।
इसी प्रकार २६ सत्र में मानुषी का विधान अपर्याप्त अवस्था का है उसमें दो गुणस्थान पहला और दूसरा बताया गया है। वहां पर भाववेद खोदे ना मानना ही पड़गा क्योंकि मानुषी का यथन है। परन्तु भाववंद और नोवेद होने पर भी वहां द्रव्य इंच पुरुषद भी हो सकता है इसमें भी कोई बाधा नहीं है। बसी दशा में १२वें सूत्र द्वारा भावदी गानुपी चौर व्यवंदी पुरुष के भपयाप्त अवस्था में दो गुणस्थान ही नहीं होंगे किन्तु तीसरा असंयत सम्याट नाम का चौथा गुणस्थान भी होगा उस कोन रोक सकता है ? उसी प्रकार भावबंद स्त्रीचंद को अपर्याप्त अवस्था में प्रयोग केवली गुणस्थान भी अनिवार्य सिद्ध होगा। फिर इस मूत्र में दो ही गुणस्थान क्यों कहे गये हैं ? इस पर भावबंदी विद्वानों को पूर्ण विचार करना चाहिये। ____ यहां पर भाववेदी विद्वानों का यह उत्तर है कि लोबेर का समय चौथे गुणस्थान में नहीं होता है इसके लिये वे गोम्मटसार कर्मकांड की अनेक गाथामों का प्रमाण देते हैं कि अपर्याप्त अवस्था में चौथे गुणस्थान में बोवेद का उपय नहीं होता है, इस की व्युछित्ति दूसरे सासादन गुणस्थान में ही हो जाती है। यह काना उनका मधूरा पूरा नहीं है। वे एक अश अपने प्रयोजन