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वहाँ १४ गुणस्थान और मोक्ष होने को कोई शंका नहीं उठाई गई है क्योंकि संयम पद से यह बात मुतगं सिद्ध है। उसी प्रकार यदि ६३वे सूत्र में भी संयम पद होता तो फिर १४ गुणस्थान
और माक्ष का होना सुतरां सिद्ध था, शंका उठाने का फिर कोई कारण हो नहीं था। सूत्र में संयम पद नहीं। और द्रव्यत्री के पर्याप्त अवस्था में सम्यग्दर्शन और देश सयम तक बताये गये हैं तभी शंका उठाई गई है जैस पर्याप्त अनाथामें उसके सम्यग्दर्शन
और देश सयम भी हो जाता है तो भाग के गुगास्थान भी हो जायंगे और मोच भी हो जायगी ?'
फिर शका तो कसी भी की जा सकती है उत्तर पर भी तो ध्यान देना चाहिये। यदि सूत्र में संगम पद होता तो उत्तर में यह बात कहने के लिये थोड़ा भी स्थान नहीं था कि 'वस्त्र सहित होने से तथा असंयम गुणस्थान में ही रहने से संयम को उत्पत्ति नहीं हो सकती।' जब सूत्र में संयमपद माना जाता है तब 'सयम नहीं हो सकता।' ऐसा सूत्र-विरुद्ध कथन धवनाकार उत्तर में कैसे कर सकते थे ? कभी नहीं कर सकते थे। अतः स्पष्ट सिद्ध है कि ६३वां सूत्र भाववेद की अपेक्षा में नहीं है किन्तु द्रव्य लो वेद की प्रधानता से ही कहा गया है अतः उसमें मयम पद किसी प्रकार भी मिद्ध नहीं हो सकता है। धवलाकार के उत्तर का ध्यान में देने स १३ वे सूत्र में 'संज" पद के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं हो सकती है। आग और भी खुलासा देखिये