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'म सहित होना, मसंयम गुणस्थान में रहना और संयम का अस्प नहीं होना' ये तीन हेतु किसी प्रकार नहीं दे सकते थे क्योंकि जब सूत्र में संयम पद मान लिया जाता है तब ऊपर कहे गये दोनों हेतु नहीं बन सकते हैं। संयम अवस्था में न तो व महितपना है। और न पसंयमपना कहा जा सकता है तथा सूत्र में संयम पद जब बताया जाता है। तब संयम उन मानुषियों के नहीं हो सकता है। यह उत्तर नहीं दिया जा सकता है। संयम पर के रहते हुये संयम उन मानुषियों के नहीं हो सकता है ऐसा खना पूर्वापर विरुद्ध ठहरता है। भाववेद वादियों को इस राक्ष समाधान एवं धवला के उत्तर में कहे गये पदों पर ध्यान पूर्वक विचार करना चाहिये।
भाव-पक्षी विद्वान यह कहते हैं कि यदि सूत्र में सञ्जद पर नहीं होता तो फिर इसी सूत्र से द्रव्य त्रियों के मोक्ष हो सकती है ऐसी शक किस प्रकार उठाई जाती ? भावपक्षी विद्वानों की इस तर्कपा के उत्तर में यह समझ लेना चाहिये कि शहा यह मानकर, उठाई गई है कि जब द्रव्यस्त्रियों के पर्याप्त अवस्था में सम्यग्दर्शन
और देशयम भी हो जाता है तो फिर पर्याप्त मनुष्य के समान उनके मोक्ष भी हो सकती है भाग के संयम गुण स्थान मी हो सकेंगे। यदि सूत्र में संजद पद होता तब तो फिर शव उठने के लिये कोई स्थान ही नहीं था जैसे मनुष्य की अपेक्षा से कहे गये १०-११वें सूत्र में पर्याप्प अवस्था में 'संजद' पर दिया गया है