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भावमंयमस्तामां सवाससामपि अविरुद्ध इतिचेन, न तासां भावसय मोहित भावाऽसयमाविना मात्रिवस्त्राद्यपादान्यथाऽनुपपत्तेः अर्थ- शंका उन मानुषियों के वन्त्र सहित रहने पर भी भव रूयमत्र होने में तो कोई विरोध नहीं है ?
उत्तर-ऐसी भी शवा ठीक नहीं है, उनके भाव संयम भी नहीं है। क्योंकि भाव असंयम का अविभावी बाद का ग्रहण है, वह ग्रहण फिर अन्यथा नहीं उत्पन्न होगा ।
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विशेशकाकार ने यह शंका उठाई है कि यदि द्रव्यस्त्रियों के वस्त्र रहते हैं तो मी अवस्था में उनके द्रव्य सयम (नग्नता-दिगम्बर मुनि रूप) नहीं हो सकता है तो मत हो । परन्तु भावसंयम तो उनके वस्त्रधारण करने पर भी हो सकता है, क्योंकि वह तो श्रात्मा का परिणाम है वह हो जायगा । इसके उत्तर में आचार्य कहते हैं कि यह बात भी नहीं है बत्र धारण करने पर उन खियों के भाव संयम भी नहीं हो सकता है। क्योंकि भाव संयम का विरोधी वरू ग्रहण है। वह वस्त्र रूयों कपास रहता है | इसलिये उनके असयम भाव ही रहता है । संयम भाव नहीं हो सकता है । श्रथान बिना वस्त्रों का परित्याग किये छठा गुणस्थान नहीं हो सकता हैं
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यहां पर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ६३ वें सूत्र में जिन मानुषियों का कथन है वे वस्त्र सहित हैं, इस लिये उनके द्रव्यलायन और भाव संयम दोनों ही नहीं होते हैं। इस स्पष्ट खुलासा