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कहा गया है।
यहां पर द्रव्य शरीर किस का लिया जाय ? यह शंका खड़ी होती है क्योंकि भावपक्षी विद्वान कहते है कि यहां पर द्रव्य शरीर तो मनुष्य (पुरुष) का है और भावत्री ली जाती है।
इस के उत्तर में इतना समाधान पर्याप्त है कि जिसका इस सूत्र में विधान है उसी का द्रव्य शरीर लिया जाता है। इस सूत्र में मनुष्य का वर्णन तो नहीं है। उसका वर्णन तो सूत्र १ E0, ६१न तीन सूत्रों में कहा जा चुका है यहां पर इस सत्र में मानुषी का ही वर्णन है इस लिये उसी का द्रव्य शरीर लिया जायगा। और भाव का यह प्रकरण ही नहीं है क्योकि पर्याप्ति भपयाप्ति के सम्बन्ध से द्रव्य शरीर की निष्पत्ति अनिष्पत्ति की ! मुख्यता से ही स्मात कथन इस प्रकार से कहा गया है। अतः जो विद्वान इस सत्र को भावली का विधायक बताते हैं और द्रव्यत्री का विधायक इस सूत्र को नहीं मानते हैं वे इस प्रकरण पर पर्याप्ति अपर्याप्ति के स्वरूप पर, सम्बन्ध समन्वय पर, और धवलाकार के स्फुट विवेचन पर मनन करें। पूर्व संक्रमबद्ध निरूपण किस प्रकार किया गया है, इस बात पर पूरा ध्यान देव
पहले के सभी सूत्रों में द्रव्य शरीर को यथानुरूप पात्रता के भाधार पर ही संभावित .एस्थान बताये गये हैं। इस सूत्रकी धवला टीका से भी यही बात सिद्ध होती है कि यह र रकी पाही विधान करता है। यदि पत्री वा विधायक यह सत्र ।