________________
नहीं माना जावे और भावली का विधायक माना जाने तो फिर पर्याप्त नाम कर्म के उदय की अपेक्षा और शरीर निष्पति को अपेक्षा से पर्याप्तता का उल्लेख धवलाकार ने जो स्पष्ट किया है वह पैसे घटित होगा ? क्योंकि भावो की विवक्षा वो मानवेद के उदयकी अपेक्षा से अर्थात नोकषाय स्त्रीवेद के उदय की अपेक्षा से हो सकती है। परन्तु यहां तो पर्याप्त नाम कर्म का उदय मौर शरीर पर्याप्त की अपेक्षा की गई है। अतः निर्विवाद रूप से यह बात सिद्ध हो जाती है कि यह सूत्र : व्यस्त्रोका हो विधायक है
हठात् विवाद में डाला गय
?
& ३ वां सूत्र और उसकी धवला टीका का
स्पष्टीकरण
सम्मामिच्छाई द्वि-बसंजरसम्माइटि-संजदासंजदट्ठाणे लिब
मा खिया ।
(सूत्र १३ पुत्र १६६ धवल सिद्धांत )
अर्थ - सम्यम्मध्यादृष्टि, असंयत सम्यम्टष्टि, संयतासंयत इन तीन गुणस्थानों में मानुषी ( द्रव्यस्त्री ) नियम से पर्याप्त ही होती है।
अर्थात तीसरा, चौथा, और पांचवां गुणस्थान द्रव्यस्त्री की पर्याप्त अवस्था में ही हो सकते हैं। पहले ६२ वे सूत्र में द्रव्यखी