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________________ चोथु अंग। सूत्र॥ उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता ६ ॥ समवायाज ... ते णं देवा चउण्हऽद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा १ । तेसिं देवाणं चउहि वाससहस्सेहिं आहारढे समुप्पज्जइ २। अत्थेगइया भवसिद्धियाजीवा जे चउहिं ॥१७॥ भवग्गहणहिं सिज्झिस्संति जाव सबदुक्खाणं अंतं करिस्संति ३॥ सूत्रम् ४ ॥ ... मूलार्थ:-चार कषाय कह्या छे, ते आ प्रमाणे-क्रोधकषाय, मानकपाय, मायाकपाय, लोभकपाय (१)। चार । ध्यान कया छे, ते आप्रमाणे-आध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान (२)। चार विकथा कही छे, ते आ प्रमाणे स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा, देशकथा (३)। चार संज्ञा कही छे, ते आ प्रमाणे-आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा (४)। चार प्रकारनो बंध कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभावबंध, प्रदेशबंध (५)। चार गाउनो एक योजन कह्यो छे (६)॥ - अनुराधा नक्षत्रना चार तारा कह्या छे (१)। पूर्वापाढा नक्षत्रना चार तारा कह्या छे (२)। उत्तरापाढा नक्षत्रना चार तारा कह्या छे (३)। - आ रत्नप्रभा पृथ्वीने विपे केटलाक नारकीओनी चार पल्योपमनी स्थिति कही छे (१)। त्रीजी पृथ्वीने विपे केटलाक १७॥ प
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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