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________________ तं जहा - इत्थिकहा भत्तकहा रायकहा देसकहा ३। चत्तारि सण्णा पन्नत्ता, तं जहा - आहारसण्णा भण्णा मेणसण्णा परिग्गहसण्णा ४ । चउविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा - पगड़बंधे ठिइबंधे अणुभावबंधे पर बंधे ५ । चउगाउए जोयणे पन्नत्ते ६ ॥ अरहानक्खते उतारे पन्नत्ते १ । पुव्वासाढानक्खते चउतारे पन्नत्ते २। उत्तरासाढानक्खत्ते चउतारे पन्नत्ते ३ ॥ इसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता १ । तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता २ । असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं चत्तारि पलिओ माई ठिई पन्नत्ता ३ | सोहम्मीसाणेसु कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओ माई ठिई पन्नत्ता ४ | सणकुमारमा हिंदेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता ५ । जे देवा किट्ठि सुकिट्ठि किट्टियावत्तं किट्टिप्पभं किट्टित्तं किट्टिवण्णं किट्टिलेसं किट्टिज्झयं किट्ठिीसिंगं किट्टिसिद्धं किटिकूडं किट्टुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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