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ते देवाने वे हजार वर्षे आहारनी इच्छा उत्पन्न थाय छे (२). केटलाक भवसिद्धिक (जेमनी सिद्धि थवानी छे एवा भव्य ) atra छे के ओ वे भवने ग्रहण करवावडे सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे अने परिनिर्वाण पामशे, एटले के सर्व दुःखनो अंत करशे (३). सूत्र -२ ॥
कार्थ :- दो दंडे ' इत्यादि सूत्र द्विस्थानकनी समाप्तिपर्यंत सुगम छे. विशेष ए के दंड, राशि अने बंधनना अर्थवाला त्रण सूत्रोछे, नक्षत्रना अर्थवाळा चार सूत्रो छे, स्थितिना अर्थवाळा तेर सूत्रो छे अने उच्छ्वासादिकना त्रण सूत्रो छे. मां अर्थवडे एटले स्व-परना उपकार करनार प्रयोजनवडे जे दंड - हिंसा ते अर्थदंड कहेवाय छे अने तेनाथी जे विपरीत ते अनर्थदंड कहेवाय छे (१).
तथा रत्नप्रभा पृथ्वीने विषे जे वे पल्योपमनी स्थिति कही, ते चोथा प्रस्तटने विषे रहेला नारकोनी मध्यम स्थिति • जाणवी (१), अने बीजी पृथ्वीने विषे जे वे सागरोपमनी स्थिति कही, ते छट्ठा प्रस्तटने विपे रहेला नारकोनी मध्यम स्थिति जाणवी, (२) तथा असुरेंद्रने वर्जीने वीजा भवनवासी देवोनी जे कांइक न्यून वे पल्योपमनी (उत्कृष्ट) स्थिति कही ते उत्तर तरफना नागकुमारादिक नव नीकायने आश्रीने जाणवी. ते विपे कधुं छे के उत्तर तरफना ( नागकुमारादिक ) असुरोनी स्थिति कiss न्यून वे पल्योपमनी छे (४). तथा असंख्यात वर्षना आयुष्यवाळा संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंचो अने मनुष्योनी जे वे पल्योपमनी स्थिति कही ते हरिवर्ष अने रम्यकवर्षमां जन्मेला तिर्यंच - मनुष्यो (युगलिक ) नी जाणवी (५-६). ॥ सूत्र-२ ॥ हवे त्रण स्थानक कहे छे