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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
॥ ११ ॥
तिपी देवो एटले चंद्र विमानना देवो, पण सूर्यादिक देवो न जाणवा. तेम ज चंद्रादिकनी देवीओ पण न जाणवी; केमके " चंद्र विमानना देवोनुं ज आयुष्य एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपमनुं जाणवुं एवं वचन छे. " (१०) सौधर्म कल्पना देवो एटले देव अने देवीओ बन्ने ग्रहण करवा, केमके सौधर्म कल्पमां एक पल्योपमथी ओछी स्थिति जघन्यथी पण नथी. आ स्थिति पहेला प्रस्तर ( पाथडा ) मां जाणवी. (११). सौधर्म कल्पमा रहेला केटलाक देवोनी एक सागरोपमनी स्थिति छे एम कयुं, त्यां देवोनुं ज ग्रहण जाणवुं, देवीओनुं ग्रहण जाणवुं नहीं; केमके त्यांनी देवीओनी उत्कृष्ट स्थिति पण पचास पल्योपमनी छे. तथा अहीं देवोनी जे एक सागरोपमनी स्थिति कही ते मध्यम स्थितिनी अपेक्षाए "जाणवी, केमके त्यां उत्कर्षथी वे सागरोपमनी स्थितिनुं होवापणुं छे. प्रस्तरनी अपेक्षाए कहीए तो आ मध्यम स्थिति सातमा प्रस्तरमां जाणवी. (१२). ईशान कल्पमा रहेला देवोनी जघन्य स्थिति जे कांइक अधिक एक पल्योपमनी कही, ते देव अने देवी बन्नेनी जाणवी; कारण के ते ईशान देवलोकमां साधिक एक पल्योपम विना बीजी जघन्य स्थिति छेज नहीं. (१३). ईशानकल्पमां केटलाक देवोनी एक सागरोपमनी स्थिति कही छे ते देवोनी ज स्थिति ग्रहण करवी. पण देवीओनी न जाणवी, केमके ते ईशानकल्पमां देवीओनी उत्कृष्ट स्थिति पण पंचावन पल्योपमनी ज छे. (१४). तथा जे देवो सागर-सागर नामना, ए ज प्रमाणे सुसागर, सागरकांत, भव, मनु, मानुषोत्तर अने लोकहित, अहीं समुच्चयनुं जणाववापं होवाथी 'च' शब्द अध्याहारथी जाणवो, आ नामना विमानने एटले देवोने निवास करवाना स्थानने पामीने, अहीं 'आसाद्य' - पामीने ए अध्याहार जाणवो, आ विमानाने पामीने जेओ देवपणे ( उत्पन्न थया छे.) पण
चोथुं
अंग ॥ .
॥ ११ ॥
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