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________________ देवीपणे नहीं, केमके देवीओनी सागरोपमनी स्थिति संभवती नथी. ते देवोनी सागरोपमनी स्थिति छे. आ सर्व विमानो सातमा प्रस्तरमा रहेला छे, एम जाणवुं. (१५). स्थितिने अनुसारे देवोने उच्छ्वासादिक होय छे, तेथी तेने बतावे जे. - ' ते णं' इत्यादि, जे देवोनी एक सागरोपमनी स्थिति छे. ते देवो ( ' णं ' शब्द वाक्यना अलंकार माटे छे ) अर्ध मासने अंते (अहीं ' अन्ते ' शब्दनो अध्याहार छे ) आणप्राण ले छे. आ शब्दोनुं ज अनुक्रमे व्याख्यान (अर्थ) करता सता कहे छे के - उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे. अहीं 'वा' शब्दो विकल्पना अर्थवाळा छे. (१६) तथा ते ज देवोने एक हजार वर्ष अंते ( अहीं पण 'अन्ते' शब्दनो अध्याहार छे ) आहारार्थ - आहारनुं प्रयोजन एटले के आभोगथी (उपयोगपूर्वक- इच्छापूर्वक) आहारना पुद्गलोनुं ग्रहण थाय छे. परंतु अनाभोगथी तो विग्रहगति सिवाय बीजे ठेकाणे दरेक समये ( समये समये ) आहारनुं ग्रहण थाय छे. ते विषे कह्युं छे के " जेनी (जे देवनी) जेटला सागरोपमनी स्थिति होय छे, तेने तेटला पखवाडीआए उच्छ्वास होय छे अने तेटला हजार वर्षे आहार होय छे. " (१७). जेमनी सिद्धि-मुक्ति थवानी .छे एवा भवसिद्धिक ( भव्य ) प्राणीओ केटलाएक छे के जेओ एक भवना एटले मनुष्यजन्मना ग्रहण करवा वडे आठ प्रकारनी समृद्धिं पामवावडे करीने सिद्ध थशे, केवळज्ञानवडे तत्त्वने जाणशे, कर्मराशिथकी मुक्त थशे अने कर्मे करेला • विकार रहित थवाथी शीतळ थशे अर्थात् सर्व दुःखोनो अंत करशे. (१८). सामान्य नयनो आश्रय करीने वस्तुनुं एकपणुं कहीने हवे विशेष नयनो आश्रय करीने वस्तुओनुं वेपणुं कहे छे. १. आठ कर्मना क्षयथी थयेला क्षायिक भावना आठ गुण - तद्रूप समृद्धि.
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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