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________________ उपसंहार । समवाय शब्दना यथार्थनामा टीकार्थ:-एज प्रमाणे आ सर्व सूत्र ग्रंथनी समाप्ति सुधी सुगम जाणवू. विशेप ए के--' आयाए ति'---वळ- समनायाग देवादिकथी आवेलं आ सूत्र एटले के देवलोकादिकथी चवेला एवा रामनी जे प्रकारे मनुष्यमा उत्पत्ति अने सिद्धि थइ .. सूत्र ॥ विगेरे सर्व कहेवू. एज प्रमाणे 'दोसु वित्ति'--भरत अने ऐवत क्षेत्रने विपे थवानावासुदेवादिक कहेवा ॥ सूत्र-१५९॥ पोथं अंग आ रीते अनेक प्रकारना अर्थों ( पदार्थों ) देखाडीने हवे अधिकार करेला आ ग्रंथना यथार्थ नामोने देखाडवा 10 माटे कहे छे-- ॥३.९॥ मू०--इच्चेयं एवमाहिज्जति, तं जहा--कुलगरवंसेइ य एवं तित्थगरवंसेइ य चकवहिवंसेइ य दसारवंसेइ य गणधरवंसेइ य इसिवंसेइ य जइवंसेइ य मुणिवंसेइ य । सुएइ वा सुअंगेइ वा सुयसमासेइ वा सुयखंधेइ वा समवाएइ वा संखेइ वा सम्मत्तमंगमक्खायं अज्झयणं ति बेमि ॥ (सूत्रम्--१६०)॥. ॥ इति समवायं चउत्थमंगं समत्तं ॥ मूलार्वः--ए रीते आ शास्त्र कहेवाय छे--ते आप्रमाणे--कुलकरना वंश, तीर्थकरना वंश, चक्रवर्तीना वंश, दशार(चळदेव-चासुदेव )ना वंश, गणधरना वंश, ऋपिवंश, यतिवंश अने मुनिवंश ॥ तथा श्रुत, श्रुतांग, श्रुतसमास, श्रुतस्कंध, समवाय (समूह), संख्या, समस्त अंग कयुं छे तथा समस्त अध्ययन कयु छे. एम हुं कहुं छु. ॥ सूत्र-१६०॥ ॥३०९॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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