________________
यरो भविस्संति, वारस इत्थीरयणा भविस्संति ॥ नव बलदेववासुदेवपियरो भविस्संति, णव वासुदेवमायरो भविस्संति, णव बलदेवमायरो भविस्संति, णव दसारमंडला भविस्संति, जहा - उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा जाव दुवे दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति, णव पडिसत्तू भविस्संति, नव पूव्वभवणामधेज्जा, नव धम्मायरिया, णव णियाणभूमीओ, णव णियाणकारणा, आयाए एवए आगमिस्साए भाणियव्वा । एवं दोसु वि आगमिस्साए भाणियव्वा ॥ (सूत्रम्--१५९ ) ॥
मूलार्थः -- चार चक्रवर्तीओ थशे, बार चक्रवर्तीना पिताओ थशे, बार चक्रवर्तीनी माताओ थशे, बार स्त्रीरत्नो थशे । नव वळदेव अने वासुदेवना पिताओ थशे, नव वासुदेवनी माता थशे, नव बळदेवनी माता थशे, नव दशारमंडळ थशे,
प्रमाणे उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष, यावत् राम अने केशव ए बवे भाइओ थशे, तेमना नव प्रतिशत्रु थशे, नव पूर्वभवना नाम थशे, नव धर्माचार्य हशे, नव नियाणानी भूमि थशे, नव नियाणाना कारण वशे, आ प्रमाणे जेम भरतक्षेत्र संबंधी कह्युं छे तेम ऐवतमां पण आवती उत्सर्पिणीमां कहेतुं । ए ज प्रमाणे आगामी काळने आश्रीने बन्ने क्षेत्रमां कहेतुं ॥ सूत्र- १५९ ॥