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. टीकार्थ:--' इति एतत् '--आ अधिकार करेलं शास्त्र ' एवं ' एटले आ कहेवाना प्रकारवडे 'आख्यायते एटले कहेवाय छे, ते आ प्रमाणे--कुलकरवंशनुं एटले कुलकरोना प्रचाहनु कहेवापणुं होवाथी कुलकरवंश कहेवाय छे. अहीं सर्वत्र ' इति' शब्द उपदर्शनने विष छे अने 'च' शब्द समुच्चय अर्थने विष छे. ' एवं '--एज प्रमाणे 'तित्थगरवंसेइ यत्ति'--जेम देशथी कुलकरवंशनुं प्रतिपादन करेलु होवाथी कुलकरवंश एम कहेवाय छे, तेम देशथी तीर्थंकरवंशनुं प्रतिपादन करेलु होवाथी तीर्थकरवंश एम कहेवाय छे. ए ज प्रमाणे ते ते वंशनुं प्रतिपादन करेलु होवाथी चक्रवर्तीवंश, दशारवंश, गणधरवंश, गणधर सिवायना जे शेप जिनशिष्यो ते ऋषि कहेवाय छे, तेना वंश कहेला होवाथी ऋषिवंश एम कहेवाय छ कारणके अहीं तेनुं प्रतिपादन (कथन) समवसरणना अधिकारे करीने ऋषिवंश सुधी पर्युषणा कल्प कहेवामां आव्यो छे, तेथी करीने ज यतिवंश अने मुनिवंश पण आ कहेवाय छे; केमके यति अने मुनि ए बन्ने शब्दो ऋषिना ज पर्याय छे. तथा आ श्रुत पण कहेवाय छे, केमके आ श्रुत त्रण काळना अर्थनो बोध करवामां समर्थ छ, तथा । श्रुतांग पण आ कहेवाय छे एटले के प्रवचनरूप पुरुषनुं अंग-अवयव छे तेथी, तथा श्रुतसमास एटले समग्र सूत्रार्थोने अहीं संक्षेपथी कह्या छे तेथी श्रुतनो संक्षेप एम कहेवाय छे. तथा श्रुतना समुदायरूप होवाथी आ श्रुतस्कंध एम कहेवाय छे. तथा 'समाए वत्ति'-समवाय एम कहेवाय छे एटले के समग्र जीवादि पदार्थों अभिधेयपणाए करीने अहीं मळेला होवाथी आ समवाय कहेवाय छे. तथा एक विगेरे संख्याना प्रधानपणाए करीने आमां पदार्थोनुं प्रतिपादन कर्यु छे तेथी संख्या एम पण कहेवाय छे. तथा भगवाने समग्र आ अंग का छे, पण आचारांगादिकनी जेम वे श्रुतस्कंध विगेरे खंड-विभागोवडे आ
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