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चोथु अंग ॥
समवायाङ्ग
सूत्र॥
॥६॥
प्रमाणे वर्तनारा बीजा जीवोने पण जे तारे छे ते तारक कहेवाय छे. तथा 'बुद्ध' जीवादिक तत्त्वो जेणे जाण्या छे ते वुद्ध कहेवाय छे. तथा बीजा प्राणीओने पण जीवादिक तत्त्वोने (उपदेश द्वारा) जणावनारा होवाथी बोधक कहेवाय छे. तथा 'मुक्त'-बाह्य अने आभ्यंतर ग्रंथिना बंधनमाथी मुक्त-रहित थयेला. तथा तेज ग्रंथिबंधनथी बीजा प्राणीओने मूकावनारा होवाथी मोचक कहेवाय छे. तथा मुक्तपणुंछतां पण 'सर्वज्ञ' अने 'सर्वदर्शी (सर्व पदार्थोंने जाणनार अने सर्व पदार्थोंने जोनार) एवा परंतु अन्य दर्शनीओए मुक्तावस्थामा पुरुष (आत्मा) ने जड थवा रूप मान्यो छे, एवा आ भगवान नथी. तथा सिद्धिगति नामनुं स्थान के जे सर्व प्रकारनी बाधा-पीडा रहित होवाथी 'शिव' सुखकारक छे, स्वाभाविक अथवा बीजाना प्रयोगथी (प्रेरणाथी) चालवाना हेतुनो अभाव होवाथी 'अचल' अचळ छे, शरीर अने मन नहीं होवाथी 'अरुज' रोग रहित छ, अनंत अर्थना विपयवाळा ज्ञानस्वरूप होवाथी 'अनंत'छे, सादिअनंतस्थितिपणुं होवाथी 'अक्षय' नाश रहित छ, अथवा पूर्णिमाना चंद्रमंडळनी जेम परिपूर्ण होवाथी 'अक्षत' छ, पीडा करनार नहीं होवाथी 'अव्यावाध , तथा संसारमा अवतरवाना कारणभूत कर्मनो अभाव होवाथी ' अपुनरावर्तक' फरीथी कोइ वार पण ज्यांथी संसारमा आववापणुं नथी, ए, सिद्धिगति नामर्नु जे 'स्थान' एटले जेने विपे जीव कमें करेला विकारना रहितपणे निरंतर अवस्थित रहे ते स्थान अर्थात् क्षीण कर्मवाळा जीवनुं स्वरूप अथवा लोकाग्र नामर्नु स्थान. अहीं सर्व विशेषणो आत्मस्वरूपनां छे, ते लोकायनां विशेषणो तरीके कयां छे, ते आधेय (जीव ) ना धर्मों (गुणो) नो आधारमा ( लोकाग्रमां) आरोप कयों छे एम जाणवू. आवा प्रकारना स्थानने पामवानी इच्छावाळा भगवान छे, पण हजु तेने पामेला नथी; कारण के ते स्थानने जो पामेला होय तो तेने इंद्रियो नहीं