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________________ होवाथी प्ररूपणा करी शके नहीं. अहीं 'पामवानी इच्छावाळा' एम जे कयुं ते उपचारथी का छे, कारण के केवळी भगवान इच्छा रहित ज होय छे. ते विषे का छे के-" उत्तम मुनि मोक्षने विषे अने संसारने विपे सर्वत्र निःस्पृह-इच्छा रहित ज होय छे." आ प्रमाणे असंख्य गुणसमूहरूपी संपदाए करीने सहित एवा भगवाने 'इमं आ एटले हमणां ज कहेवातुं होवाथी प्रत्यक्ष, समीपे रहेलं अने 'द्वादशांग' जेमां बार अंग रहेला छे एवं 'गणिपिटक' आचार्य- पिटक जेवू पिटक (पेटी)। एटले के जेम वालंजुक वणिकनी पेटी सर्वस्वना आधारभूत होय छे, तेम आचार्यने द्वादशांगरूपी पेटी ज्ञानादिक गुणरत्नरूप, सर्वस्वना आधारभूत छे. आबु गणिपिटक भगवाने 'प्रज्ञप्तं' कहुं छे एटले के तीर्थकरनामकर्म उदयमां वर्ततुं होवाथी पाये कृतार्थ होवा छतां पण परोपकारने माटे प्रकाश्युं छे. 'तद्यथा' ए शब्द उदाहरण देखाडवा म अर्थ सुगम छे, तेमनी व्युत्पत्ति विगेरे शब्दार्थ आगळ कहेवामां आवशे. 'तत्थ णं' ते बार अंगने विष ('ण' शब्द वाक्यना अलंकार माटे लख्यो छे) जे चोथु अंग समवाय एवा नामर्नु कयुं छे तेनो आ अर्थ छे. आत्मा विगेरे शब्दो आ समवायना | अभिधेय छे एम अध्याहार जाणवो. 'तद्यथा' ए शब्द वाचनांतरना बीजा संबंधना सूत्रनी व्याख्या जणाववा माटे छे. अहीं पदार्थना समूहने कहेनारा विद्वान पुरुषे अनुक्रमे ज आ ( समवाय ) कहेवो जोइए एवो न्याय छे, तेथी तेमां आचार्यमहाराज एकत्व विगेरे संख्याना क्रमना संबंधवाळा अर्थों कहेवानी इच्छावाळा होवाथी प्रथम एकत्व सहित एवा पदार्थोंने अने तेमां पण सर्व पदार्थोनो भोगी आत्मा होवाथी-तेनुं प्रधानपणुं होवाथी आत्मादिक पदार्थोने, तेम ज सर्व वस्तु १ आ शब्द संज्ञावाचक छे के विशेषण छे ते समजातुं नथी. कोषमा ए शब्द नथी.
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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