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________________ श्री समवायाङ्ग " सूत्र ॥ ॥५॥ • आवा जीवनने जे आपे ते जीवदय कहेवाय छे. आ हमणां कहेल विशेषणोनो समूह भगवाननी धर्ममय मूर्ति होवाथी प्राप्त थाय छे - लागु पडे छे. तेथी बीजा पांच विशेषणोवडे भगवानना धर्ममयपणाने कहे छे बतावे छे. - दुर्गतिमां . पडता जंतुओने धारण करवाना स्वभाववाळो जे होय ते धर्म कहेवाय छे. ते धर्म श्रुत अने चारित्र एम वे प्रकार नो . धर्म पे ते धर्मदय कहेवाय छे. अहीं धर्मनुं जे देवं ते तेना कहेवावडे ज थइ शके छे, तेथी कहे छे केउपर कहेला धर्मने जे देखाडे एटले कहे ते धर्मदेशक कहेवाय छे. आ भगवाननुं धर्मदेशकपणुं धर्मना स्वामीपणाने लइने छे, पण नटनी जेवुं नथी. ते बाबत देखाडता सता कहे छे के क्षायिक ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप धर्मना नायक - एटले यथार्थ रीते पालन करनार होवाथी ने स्वामी, ते धर्मनायक कहेवाय छे. तथा भगवान धर्मना सारथि छे, जेम रथनो सारथि रथनुं, रथिकनुं (रथमां बेसनारनुं) अने अश्वोनुं रक्षण करे छे, तेम भगवान चारित्र धर्मना अंगभूत एवा संयम, आत्मा अने प्रवचन ( सिद्धांत ) नुं रक्षण करवानो उपदेश आपे छे, तेथी ते धर्मसारथि कहेवाय छे. तथा ऋण दिशाए समुद्र अने उत्तर दिशा तरफ हिमवान पर्वत ए चारेना पर्यंतने विषे एटले ते चारे दिशा सुधी जेनुं स्वामीपणुं होय ते चातुरंत कचाय छे, एवा चातुरंत जे चक्रवर्ती ते चातुरंत चक्रवर्ती कहेवाय छे' अने 'वर' एटले श्रेष्ठ एवा जे पृथ्वीना चातुरंतचक्रवर्ती तेवरचातुरंत चक्रवर्ती एटले राजांना अमुक प्रकारना विशिष्ट अतिशयवाळा कहेवाय छे. हवे धर्मना विषयमा जे वरचातुरंतचक्रवर्ती ते धर्मवरचातुरंतचक्रवर्ती कहेवाय छे. जेम पृथ्वी उपर सर्व राजाओथी चडीयाता वरचातुरंतचक्रवर्ती होय छे, १. आ हकीकत जंबूद्दीपना भरतक्षेत्रने आश्रयीने समजवी. . चोथुं अंग ॥ ॥५॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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