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लोकनाथपणुं विगेरे विशेषणोना योग (संबंध ) वाळा विष्णु, शंकर अने ब्रह्मा विगेरे देवो पण ते ते तीर्थिकोना मत प्रमाणे संभवे छे, तेथी आ भगवानना संबंधमां विशेष शुं आव्युं ? आवी शंका थवाथी तेनुं विशेषपणुं कहेवा माटे कहे छे के प्राणनो नाश करवामां रसिक एवा उपसर्गो करनारा प्राणीने पण जे भय आपनारा नथी ते अभयदय कहेवाय छे, अथवा जेने सर्व प्राणीओना भयने दूर करनारी दया होय ते अभयदय कहेवाय छे, तेवा तो आ भगवान ज छे, पण हरि-हरादिक देवो तेवा नथी. वळी आ भगवान अपकार करनारानो पण अनर्थ दूर करे छे एटलं ज नहीं, परंतु अर्थनी प्राप्तिने पण करे छे, ते देखाडे छे, - शुभाशुभ पदार्थनो विभाग (विवेचन ) करनार होवाथी चक्षुनी जेवा चक्षुरूप श्रुतज्ञानने जे आपे छे, ते चक्षुर्दय कहेवाय छे. वळी जेम लोकमां चक्षु आपीने इच्छित स्थाने जवानो मार्ग देखाडनार पुरुष महाउपकारी होय छेकहेवाय छे, तेम अहीं पण जाणवुं, ते ज बाबत देखाडता सता कहे छे के सम्यग् दर्शन, ज्ञान अने चारित्ररूप मुक्तिपदना मार्ग जे आपेछे-देखाडे छे ते मार्गदय कहेवाय छे. वळी जेम लोकमां चक्षुनुं उघाडवं अने मार्गनुं देखाडवुं करीने चौरादिकथी उपद्रव पामता प्राणीओने उपद्रव रहित एवा स्थानने पमाडनार पुरुष परम उपकारी थाय छे- कहेवाय छे, तेम अहीं पण जाणवुं. ते ज बाबत देखाडता सता कहे छे के शरण एटले अज्ञानरूपी उपद्रवोथी हणायेला प्राणीओने रक्षण करवानुं स्थान अर्थात् आवुं स्थान परमार्थथी निर्वाण - मोक्षस्थान छे, तेने जे आपनारा ते शरणदय कहेवाय छे. वळी जेम लोकमां चक्षु, मार्ग अने शरण आपवाथी दुःखी प्राणीओने जीवित आप्युं कहेवाय छे, तेम अहीं पण जाणवुं. ते बाबत देखाडता सता कहे छे के जीव एटले भावप्राणनुं धारण करतुं ते अर्थात् अमरणधर्मपणुं (कोइ पण वखत मरण न थाय ते)