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________________ समवायाङ्ग सूत्रं ॥ अंग ॥२८०॥ ' (जे थाय ते) क्षेत्र वेदना, नारकादिक आयुष्यरूप काळना संबंधथी थाय ते काळ वेदना अने वेदनीय कर्मना उदयथी (जे वेदना थाय ते ) भाव वेदना कहेवाय छे. तेमां नारकथी आरंभीने वैमानिक सुधीना सर्व जीवो चारे प्रकारनी वेदना वे छे. २. तथा ' सारीर त्ति त्रण प्रकारनी वेदना - शारीरिक, मानसिक अने शारीरमानसिक तेमां संज्ञी पंचेंद्रिय सर्व जीवणे प्रकारनी वेदना वेदे छे अने शेष जीवो एकली शारीरिक वेदना वेदे छे. ३. तथा 'साथ त्ति 'त्रण प्रकारनी वेदना - साता, असाता अने सातासाता. तेमां सर्व जीवो त्रणे प्रकारनी वेदना वेदे छे. ४. 'तह वेयणा भवे दुक्ख त्ति -त्रण प्रकारनी वेदना सुख, दुःख अने सुखदुःख. तेमां सर्व जीवो त्रणे प्रकारनी वेदना वेदे छे. ५. अहीं सात, असात अने सुख, दुःखनो विशेष आ प्रमाणे छेक्रमे करीने ( पोतानी मेळे ) उदयने पामेला वेदनीय कर्मना पुद्गलोनो जे अनुभव थवो ते सात असात कहेवाय छे, अने वीजाए उदिराता वेदनीय कर्मना पुद्गलोनो जे अनुभव थवो ते सुख दुःख कहेवाय छे. तथा 'अम्भुवगमुवकमिय त्ति ' - वे प्रकारनी वेदना - आभ्युपगमिकी अने औपक्रमिकी. तेमां जीवो पहेली (आभ्युपगमिकी ) वेदनाने पोते ज स्वीकार करीने वेदे ते. जेमके साधुओ केशनो लोच अने ब्रह्मचर्य विगेरेथी वेदे छे ते, अने वीजी ( औपक्रमिकी ) ते स्वयमेव उदयमां आवेला अथवा उदीरणा करवावडे उदमां आणला वेदनीय कर्मनो जे अनुभव करवो ते. तेमां पंचेंद्रिय तिर्यंच अने मनुष्यो आ बन्ने प्रकारनी वेदना वेदे छे, "अने शेष जीव एकली औपक्रमिकी वेदनाने वेदे छे, ६-७, तथा 'णीयाए चेव अणियाए त्ति' - वे प्रकारनी वेदना-निदया एटले आभोगथी ( जाणीने ) अने अनिदया एटले अनाभोगथी ( अजाणपणे ) वेदाय ते. तेमां संज्ञी जीवोने बने वेदना विचार | ॥२८०॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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