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________________ प्रकारनी होय छे अने असंज्ञीने एकली अनिदयावेदना वेदाय छे. ८-९. आ द्वारोना विवरणने माटे 'नेरइयाणं' इत्यादि सूत्र का छे, आ अवसरे प्रज्ञापना सूत्रनु वेदना नामर्नु पांत्रीशमुं पद कहेवू. इति ॥ . हमणां वेदनानी प्ररूपणा करी, ते वेदना लेश्यावाळाने ज होय छे, तेथी हवे लेश्यानी प्ररूपणा करवा माटे कहे छे मू-कइ णं भंते ! लेसाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! छ लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा-किण्हा नीला काऊ तेऊ पम्हा सुक्का, एवं लेसापयं भाणियत्वं ॥ . मूलार्थ:-हे भगवान ! लेश्याओ केटली कही छे ? हे गौतम ! छ लेश्याओ कही छे, ते आ प्रमाणे-कृष्ण, नील, कापोत, तेजस् , पद्म अने शुक्ल. ए प्रमाणे लेश्यापद कहे ॥ टीकार्थः- कह णं भंते !' इत्यादि, आ स्थाने प्रज्ञापना सूत्रनु छ उद्देशावाडं लेश्या नामनुं सत्तरमुं पद कहेवू. | ते पद अति मोटुं होवाथी अमे अर्थथी पण अहीं लख्यु नथी, तेथी त्यांथी ज जाणी लेवु. इति ॥ . हमणां लेश्याओ कही. हवे लेश्यावाळा ज जीवो आहार करे छे, तेथी आहारनी प्ररूपणा करवा माटे कहे छे मू०-अणंतरा य आहारे, आहाराभोगणा इय । पोग्गला नेव जाणति, अज्झवसाणे य सम्मत्ते ॥ १॥ नेरइया णं भंते ! अणंतराहारा तओ निवत्तणया तओ परियाइयणया तओ परिणामरणाय तओ परियारणया तओ पच्छा विकुव्वणया ? हंता गोयमा ! एवं आहारपदं भाणि
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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