________________
अवधिज्ञान
समवायाज
यत्र ॥ चोधु अंग ॥२७९॥
ते सर्वावधि कहेवाय छे. तेमां मनुष्योने बन्ने प्रकारर्नु अवधि होय छे अने वीजा सर्वेने देशावधि एक ज होय छे; कारण के केवळज्ञाननी प्राप्तिना समीपने समये ज सर्वावधि ( परमावधि) थइ शके छे. ६. तथा अवधिज्ञाननी वृद्धि अने हानि कहेवी. तेमांनु जे जीवोने जेवू अवधि होय ते कहे. तेमां तिथंच अने मनुष्यने वर्धमान (वधतुं) अने हीयमान (घटतुं) वन्ने प्रकारनु अवधि होय छे. बाकीनाने (नारकी अने देवने) अवस्थित ज (एक सर ज) होय छे. तेमां अंगुलना असंख्यातमा भाग विगेरेने प्रथम जोइने पछी वधारे वधारे जोवे ते वधतुं ( वृद्धिमान ) कहेवाय छे अने तेनाथी जे विपरीत ते हानि पामतुं (हीयमान ) कहेवाय छे. ७. तथा प्रतिपाती अने अप्रतिपाती एवा वे प्रकारर्नु अवधि छे तेमां उत्कर्षथी आखा लोकने जाणे तेटलं होय ते प्रतिपाती होइ शके छे अने तेनाथी अधिक देखे ते अप्रतिपाती कहेवाय छे. तेमा जे भवप्रत्यय अवधि छे ते ते भव पूरो थतां सुधी पडतुं नथी अने जे क्षायोपशमिक अवधि छे ते वन्ने प्रकारर्नु होय छे. ८-९. इति ॥ तेज देखाडे छे" मू०-कइविहे णं भंते ! ओही पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता-भवपच्चइए य खओवसमिए य, एवं सवं ओहिपदं भाणियत्वं ॥
मूलार्थ:-हे भगवान ! अवधिज्ञान केटला प्रकारे कयुं छे ? हे गौतम ! वे प्रकारे कां छे-भवप्रत्ययिक अने क्षायोपशमिक. ए प्रमाणे सर्व अवधिपद कहे ॥
॥२७९॥