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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
चो अंग
॥२७८॥
कार्मण शरीरनी अवगाहना पण एज रीते जाणवी, केमके तेजस शरीर अने कार्मण शरीरनी अवगाहना एक सरखी ज होय छे. इति ॥ कहेला अर्थवाळा ज सूत्रना अंशाने कहे छे–'गेवेज्जस्स णं इत्यादि ॥ अनंतर ( उपर) प्राणीओनो अवगाहनाधर्म को हवे अवधिधर्मनुं प्रतिपादन करवा माटे कहे छे
मू० - भेय विसयसंठाणे, अभितर बाहिरे य देसोही ।
ओहिस्स बुड्ढाणी, पडिवाई चेव अपडिवाई ॥ १ ॥
मूलार्थ:- अवधिज्ञाना भेद १, विषय २, संस्थान ३, आभ्यंतर ४, बाह्य ५, देशावधि ६, हानिवृद्धि ७, प्रतिपाती ८ अने अप्रतिपाती ९. आ सर्व द्वार कहेवा.
कार्थ :- भेदे इत्यादि द्वारगाथा - तेमां अवधिना ( अवधिज्ञानना) भेद कहेवा; जेमके वे प्रकारे अवधि छेभवप्रत्यय ( भवने आश्रीने ) अने क्षायोपशमिक ( क्षयोपशमने आश्रीने थयेल ). तेमां देव अने नारकीने भवप्रत्यय अवधि . होय छे, तथा मनुष्य अने तिर्यंचने क्षायोपशमिक अवधि होय छे. १. तथा अवधिनो विषय कहेवो. ते विषय चार प्रकारनो छे-द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव. तेमां द्रव्यथी जघन्य तेजस् अने भाषा बन्नेने अग्रहण प्रायोग्य वर्गणा सुधीना द्रव्योने जाणे, अने उत्कर्षथी एक परमाणुथी आरंभीने अनंत परमाणु सुधीना सर्व रूपी द्रव्यना समूहने जाणे. क्षेत्रथी आ प्रमाणे - जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटला क्षेत्रने जाणे अने उत्कर्षथी अलोकने विपे लोकप्रमाणवाळा असं
अवधिज्ञान विचार
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