________________
चादर पृथ्वीका यादिकने विषे ज उत्पन्न थइ शके छे, तेथी आगळ थड़ शकता नथी. तथा सनत्कुमार देवलोकथी आरंभीने सहस्रार देवलोक सुधीना देवोना तैजस शरीरनी अवगाहना जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली छे, केवी रीतें ? ते कहे छे - पंडकवनादिकनी पुष्करिणीमां स्नान (क्रीडा) करवा माटे उतरतां मरण पामीने त्यां ज मत्स्यपणे उत्पन्न यह शके छे तेथी, अथवा पूर्वभव संबंधी मनुष्ये भोगवेली पोतानी स्त्रीने आलिंगन करी ( करती वखते ) मरण पामी तेना ज गर्भमा उत्पन्न थइ शके छे तेथी, अने उत्कर्षथी तो नीचे महापातालकळशना वीजा त्रिभाग सुधी जाणवी; कारण के त्यां जळ होवाथी मत्स्यमां उत्पन्न यह शके छे, तिरहुं स्वयंभूरमण समुद्र सुधी अने ऊंचे अच्युत देवलोक सुधी जाणवी. कारण के त्यां संगतिक ( मित्र ) देवनी निश्राए ( मददथी ) जइ मरण पामी अहीं ( मनुष्यमां ) ज उत्पन्न थइ शके छे तेथी. तथा आनत देवलोकथी आरंभीने अच्युत देवलोक सुधीना देवोना तैजस शरीरनी अवगाहना जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली जाणवी. केंवी रीते ? ते कहे छे - अहीं ( मर्त्यलोकमां ) आवी मरणकाळने लीधे विपरीत मति 'थवाथी मनुष्ये भोगवेली नारीने पण आलिंगन करी मरण पामी त्यां ज उत्पन्न थइ शके छे तेथी, अने उत्कर्षथी तो नीचे 'अधोलोक ग्राम सुधी, तिरछं मनुष्य क्षेत्रने विषे अने ऊंचे अच्युतविमान सुधी तैजस शरीरनी अवगाहना समजवी. तेने मनुष्योने विपेज उत्पन्न वापणुं छे, अहीं भावार्थ पूर्वनी जेम जाणवो. तथा नव ग्रैवेयक अने पांच अनुत्तरोपपातिक देवोना तैजस शरीरनी अवगाहना जघन्यथी विद्याधरनी श्रेणि सुधी अने उत्कर्षथी नीचे अधोलोकग्राम सुधी, तिरहुं मनुयक्षेत्र सुधी अने ऊंचे तेमना ( पोतपोताना ) विमान सुधी ज जाणवी. इति ॥