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श्री
समवायाङ्ग
सूत्र ॥
श्रधुं अंग
१२७७॥
तथा मारणांतिक समुद्घातने पामेला जीवना तैजस शरीरनी अवगाहना केटली कही छे ? हे गौतम ! विष्कंभ अने वाल्यवडे शरीरना प्रमाण जेंटली अने आयामवडे जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली अने उत्कर्षथी ऊंचे अने नीचे लोकांतथी आरंभीने लोकांत सुधी जाणवीः केमके एकेंद्रिय जीव त्यांथी (अधोलोकांतथी) त्यां ( उर्ध्व लोकांते) उत्पन्न यह शके छे तेने आश्रीने आ जाणवुं एवो भावार्थ छे. एज प्रमाणे सर्व (पांचे) एकेंद्रिय संबंधी जाणवुं, परंतु द्वींद्रिय जीवोनी तो आयामवडे उत्कर्षथी तिर्यग्लोकथी आरंभीने तिर्यग् लोकांत सुधी जाणवी; केमके प्राये करीने तिर्यग्लोकमां द्वींद्रियादिक तिर्यच होय छे. नारकीना तैजस शरीरनी अवगाहना जघन्यथी एक हजार योजननी छे. केवी रीते ? ते कहे छेनरकमांथी नीकळीने पाताळकळशना एक हजार योजनना मानवाळा कुड्य ( ठीकरी ) ने भेदीने तेमां मत्स्यपणे उत्पन्न थाय तेने आधीने तेटली अवगाहना होय छे अने उत्कृष्टथी नीचे सातमी पृथ्वी सुधी अवगाहना होय छे, आ प्रमाण सातमी पृथ्वीनो नारकी समुद्रादिकना मत्स्यने विषे उत्पन्न थाय तेने आश्रीने जाणवुं तिरहुं स्वयंभूरमण समुद्र सुधी अने ऊंचे पंडकवननी पुष्करिणी (वाव) सुधी जाणवु, केमके नारकी जीव ते बन्नेमां उत्पन्न थइ शके छे, पण तेनाथी आगळ उत्पन्न थता नथी. तथा मनुष्यना तैजस शरीरंनी अवगाहना (सर्वदिशाएं) लोकांत सुधी जाणवी तथा भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क, सौधर्म अने ईशान कल्पना देवोना तैजस शरीरनी अवगाहना जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली छे, केमके तेओ पोताने स्थाने ज पृथ्वीकायादिकपणे उत्पन्न थइ शके छे, अने उत्कर्षथी नीचे त्रीजी पृथ्वी सुधी, तिरलुं स्वयंभूरमण समुद्रनी बहारनी वेदिकाना अंत सुधी अने ऊंचे ईपत्प्रागभारा नामनी पृथ्वी सुधी जाणवी, कारण के तेओ शुभ पर्याप्त
अवगाहना विचार ॥
॥२७७॥