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नहीं पामेला प्रमत्तने होतुं नथी, ऋद्धि पामेलाने आहारक शरीर होय छे). एज बावत कहे छ-'वयणा विभाणियव्व त्ति'-सूचवन करेला वचनो पण सर्वे कहेला न्याये करीने कहेवा, अर्थात् विभागवडे ( जुदा जुदा ) संपूर्ण उच्चारण करवा ।
. 'आहारय त्ति' हे भगवान ! आहारक शरीरनी केटली मोटी शरीरावगाहना कही छे ? हे गौतम ! एम सूचवन कयु छे के जघन्यथी काइक न्यून रत्नि जेटली कही छे. ( उत्कृष्टथी पूर्ण रत्नि कहेल छे) केवी रीते ? ते कहे छे-तथाप्रकारना प्रयत्न विशेषथकी अने तथाप्रकारना आरंभक द्रव्यविशेषथकी प्रारंभने समये पण कडं तेटलं ज प्रमाण होय छे, कारण के औदारिकादिक शरीरनी जेम प्रारंभने काळे अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली अवगाहना होती नथी, एवो भावार्थ छे. .: 'तेयासरीरे णं भंते ' इत्यादि, 'एवं जाव'-यावत् शब्द लख्यो छे तेथी प्रज्ञापना सूत्र संबंधी एकवीशमा पदमां कहेल तैजस शरीरनी वक्तव्यता अहीं कहेवी, तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे-हे भगवान ! एकेंद्रियर्नु तैजस शरीर केटला प्रकारचें कह्यु छ ? हे गौतम ! पांच प्रकारचें कयुं छे. ते आ प्रमाणे-पृथ्वीकायथी लइने वनस्पतिकाय सुधीना एकेंद्रियना तैजस शरीर कह्या छे. ए प्रमाणे जीवराशिनी प्ररूपणाने अनुसारे सूत्रनी भावना करवी, यावत् सर्वार्थसिद्धिक अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवरूप पंचेंद्रियर्नु तैजस शरीर हे भगवान! केवा संस्थानवाळु कयुं छे ? हे गौतम ! | विविध संस्थानवाल्छं कयुं छे. जे पृथिव्यादिक जीवनुं जे औदारिकादिक शरीरनुं संस्थान कयुं छे ते ज तैजस शरीर अने कार्मण शरीरनुं जाणवू. ।