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________________ श्री समवायाङ्ग सूत्रः ॥ चो अंग ॥२७६॥ अवगाहना कही छे. आ हकीकतने सूत्रमां ज कहे छे - ' एवं जाव सणकुमारेत्यादि ' - एवं एटले ' दुविहे पत्ते एगिंदिय ' इत्यादि पूर्वे देखाडेला क्रमे करीने प्रज्ञापना सूत्रमां कहेलं वैक्रिय अवगाहनाना प्रमाणवाळं सूत्र कहेनुं. क्यां सुधी कहेतुं ? ते कहे छे - यावत् सनत्कुमारथी आरंभीने भवधारणीय वैक्रिय शरीरनी हानि जाणवी. एटलो अध्याहार छे. त्यांथी ( सनत्कुमारथकी ) पण यावत् अनुत्तराणि एटले अनुत्तरदेव संबंधी जे भवधारणीय शरीर छे त्यांसुधी एक एक रत्न ( हाथ ) नी हानि करवी, एवा अर्थवाळं सूत्र आवे त्यांसुधी कहेवुं इति । ग्रंथांतरमां तो आ वाक्य अन्यथा प्रकारनुं पण देखाय छे, तेमां पण अर्थनी घटना आने अनुसारे ज करवी ॥ ' आहारय ० ' इत्यादि सूत्र सुगम छे. विशेष ए के 'एवमिति' - प्रथम जे प्रमाणे परिपूर्ण आलावो कह्यो छे ते ज प्रमाणे उत्तरत्र (पछी) पण कहेवो. ते आ प्रमाणे - 'जइ मणुस्स त्ति' - हे भगवान ! जो मनुष्यने आहारक शरीर कयुं छे, तो शुं गर्भज मनुष्य आहारक शरीर होय छे के संमूर्छिम मनुष्यने आहारक शरीर होय छे ? हे गौतम! गर्भज मनुष्यने आहारक होय छे, पण संमूर्छिम मनुष्यने आहारक शरीर होतुं नथी. हे भगवान ! जो गर्भज मनुष्यने आहारक शरीर होय छे तो, इत्यादि सर्व कहेतुं यावत् जो प्रमत्त संयत सम्यगष्टि पर्याप्त संख्याता वर्षना आयुष्यवाळा कर्मभूमिना गर्भज मनुष्यने आहारक • शरीर होय छे तो शुं ऋद्धिने पामेला प्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्याता वर्षना आयुष्यवाळा कर्मभूमिना गर्भज मनुष्यने आहारक शरीर होय छे के ऋद्धिने नहीं पामेला प्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्याता वर्षना आयुवाळा कर्मभूमिना गर्भज मनुष्यने आहारक शरीर होय छे ? हे गौतम ! बीजानो निषेध अने पहेलानी अनुज्ञा कहेवी ( ऋद्धि प्रांच प्रकार शरीर विचार ॥. ॥२७६॥
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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