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बन्ने हुंडसंस्थानवाळ, पंचेंद्रियतिर्यंच अने मनुष्यने विविध प्रकारना संस्थानवालं अने देवोने भवधारणीय वैक्रिय शरीर | समचतुरस्र संस्थानवाळं अने उत्तरवैक्रिय विविध संस्थानवालं होय छे. मात्र कल्पातीत देवने भवधारणीय ज होय छे.
तथा हे भगवान ! वैक्रिय शरीरनी अवगाहना केटली मोटी कही छे ? हे गौतम ! जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली अने उत्कर्पथी कांइक अधिक एक लाख योजन जेटली होय छे. तेमां वायुकायने बन्ने प्रकारे (जघन्य अने उत्कर्षथी) अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली कही छे. ए ज प्रकारे नारकीने जघन्यथी भवधारणीय शरीरनी अंगुलना असंख्यातमा भागनी अने उत्कर्षथी पांच सो धनुष्य जेटली ( अवगाहना ) कही छे. आ अवगाहना सातमी पृथ्वीने विषे जाणवी, छठी विगेरे पृथ्वीने विपे तो ए ज अवगाहना अर्ध अर्ध हीन जाणवी. परंतु उत्तरवैक्रिय शरीरनी अवगाहना
तो सर्वेनी (साते पृथ्वीना नारकीनी ) जघन्यथी अंगुलना संख्यातमा भाग जेटली अने उत्कर्षथी अवगाहना भवधारN|| णीय शरीरथी बमणी जाणवी. पंचेंद्रिय तियंचोने उत्कर्षथी बसोथी नव सो योजननी जाणवी, मनुष्योने उत्कर्पथी कांइक
अधिक एक लाख योजननी होय छे, देवोने उत्तर वैक्रिय शरीरनी अवगाहना एक लाख योजननी छे अने भवधारणीय | शरीरनी अवगाहना तो भवनपति, व्यंतर, ज्योतिपी, सौधर्म अने ईशानना देवोने सात हाथनी, सनत्कुमार अने माहेंद्र
कल्पना देवोने छ हाथनी, ब्रह्म अने लांतकना देवने पांच हाथनी, महाशुक्र अने सहस्रार देवने चार हाथनी, आनतादिक चारने विषेत्रण हाथनी, नव ग्रैवेयकने विपे बे हाथनी अने अनुत्तर विमानने विपे एक हाथनी भवधारणीय शरीरनी
१ अरधी अरंधी एटले छठ्ठीमा २५० धनुष्य, पांचमीमा १२५ धनुष्य, चोथीमां ६२॥ धनुष्य ए प्रमाणे समजवी.