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श्री
समवायास
सूत्र ॥
चो अंग
॥२७५॥
• द्रियने वैक्रिय शरीर होय छे, अवायुकाय एकेंद्रियने वैक्रिय शरीर होतुं नथी, इत्यादिक अभिलापे ( आलावा ) करीने आ अर्थ जाणवो-जो वायुकायने वैक्रिय शरीर होय छे तो ते सूक्ष्म वायुकायने के वादर वायुकायने होय छे ? हे गौतम! बादर होय छे. जो बादरने होय छे तो शुं पर्याप्ताने के अपर्याप्ताने ? हे गौतम ! पर्याप्ताने ज होय छे. हे भगवान ! जो पंचेंद्रियने (वैक्रिय शरीर होय छे ) तो शुं नारकीने, पंचेंद्रिय तिर्यंचने, मनुष्यने के देवने (वैक्रिय शरीर होय छे ) १ गौतम ! सर्वने (चारेने ) होय छे, तेमां साते प्रकारना नारकी पर्याप्ता अने अपर्याप्ता बन्नेने होय छे. हे भगवान ! जो तिर्यंचने होय छे तो शुं संमूर्छिमने के वीजाने ( गर्भजने ) १ हे गौतम ! बीजाने एटले गर्भजने ज होय छे, ते गर्भज - पण संख्याता वर्षना आयुष्यवाळा पर्याप्ताने ज होय छे, ते पण जळचरादिक त्रणे भेदवाळाने ( वैक्रिय शरीर) होय छे. तथा मनुष्य होय छे ते गर्भजने ज होय छे, ते पण कर्मभूमिमां उत्पन्न थयेलाने ज, ते पण संख्याता वर्षना आयुष्यवाळा पर्याप्त होय छे. तथा देव एटले भवनवासी चिरेने होय छे, तेमां दश प्रकारना असुरादिक पर्याप्ता अने इतर ( अपयता ) बन्नेने होय छे, ए ज प्रमाणे आठ प्रकारना व्यंतरने अने पांच प्रकारना ज्योतिपीने होय छे. तथा हे भगवान ! जो वैमानिक देवने (वैक्रिय शरीर ) होय छे तो शुं कल्पोपपन्न देवने के कल्पातीत देवने होय छे ? हे गौतम ! बने • प्रकारनाने होय छे ते पण पर्याप्ता अने अपर्याप्ता बन्नेने वैक्रिय शरीर होय छे. ॥
तथा हे भगवान ! वैक्रिय शरीर केवा संस्थान (आकार )बाळं होय छे ? आ प्रश्ननो जवाब कहे छे के हे गौतम! विविध प्रकारना संस्थानवाळं होय छे. तेमां वायुकायने पताकासंस्थानवाल, नारकीओने भवधारणीय अने उत्तरवैक्रिय
SS
प्रांच प्रकार
शरीर
विचार ॥
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