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(श्रेष्ट) होवाथी उत्तम छे तेथी पुरुषोत्तम छे. हवे सिंहादिक त्रण उपमानवडे आ भगवाननुं पुरुषोत्तमपणुं सिद्ध करता सता कहे छे के-सिंहनी जेवा शूरवीर होवाथी सिंह, पुरुषरूपे सिंह ते पुरुषसिंह कहेवाय छे. लोकोए सिंहने विषे अत्यंत प्रकृष्ट शौर्य मान्युं छे, तेथी शूरवीरपणाने आश्रीने सिंहनी उपमा आपी छे. भगवानने बाल्यावस्थामा प्रत्यनीक (मिथ्यात्वी) देव अत्यंत वीवराववा आव्यो हतो-बीवराववानो प्रयत्न कर्यो हतो तो पण ते भय पाम्या नहोता, तथा क्रीडा समये। वृद्धि पामता देवना शरीरने वज्र जेवी मुष्ठिना प्रहारवडे हणीने कुब्ज करी नांख्युं हतुं, तेथी भगवाननुं शूरवीरपणुं प्रसिद्ध ज छे. तथा श्रेष्ठ एवं जे पुंडरीक एटले धोडं कमळ ते वरपुंडरीक कहेवाय छे, अने पुरुषरूप ज जे वरपुंडरीक ते पुरुषवर
पुंडरीक कहेवाय छे. अहीं भगवान सर्व अशुभ एवा मलिनपणाथी रहित छे अने सर्व शुभ अनुभावोवडे शुद्ध छे तेथी तेनुं PA श्वेतपणुं कर्तुं छे. तथा श्रेष्ठ एवो जे गंधहस्ती ते वरगंधहस्ती कहेवाय छे अने पुरुषरूप जे वरगंधहस्ती ते पुरुषवरगंधहस्ती
कहेवाय छे. जेम गंधहस्तीना गधथी ज सर्व हस्तीओ भागी (नाशी) जाय छ, तेमना मद गळी जाय छे, तेम भगवानना ते ते
देशना विहारवडे ज सात प्रकारनी ईतिओ-स्वसैन्य, परसैन्य, दुकाळ अने डमर-मरकी विगेरे उपद्रवो सो योजन सुधीमां नाश IM पामे छे. ' तेथी भगवान पुरुषरूपी श्रेष्ठ गंधहस्ती समान छे. हवे भगवान केवळ पुरुषोनी मध्ये ज उत्तम छे एटलं ज नहीं, IN
परंतु समग्र जीवलोकमां पण उत्तम छे, तेथी कहे छे के-'लोकोत्तम' तिर्यंच, मनुष्य, नारकी अने देवरूप चार प्रकारना समग्र जीवलोकने विपे 'उत्तम' एटले ज्ञानीना (केवळज्ञान थवाथी उत्पन्न थनारा) चोत्रीश अतिशयो विगेरे असाधारणगुणोना
१. अहीं चारे दिशामा सो सो योजन समजवा.