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समवायाङ्ग पत्र ॥
चोy अंग
॥२५॥
होवाथी जमानुपोत्तर पर्वतनी वहार रहेला समुद्रनी जेम अव्यय छे, अव्ययपणुं होवाथी ज जंबूद्वीपादिकनी जेम पोताना प्रमाणमा ( सावीतपणामां) अवस्थित (स्थिर रहेल) छे, अने अवस्थितपणुं होवाथी ज आकाशनी जेम नित्य छे. इति.IN परिचय। हवे आ अर्थमां दृष्टांत आपे छ-'से जहा नामए' इत्यादि-जेम धर्मास्तिकाय विगेरे पांचे अस्तिकाय कदापि नहोता एम नहीं, इत्यादिक पूर्वनी जेम जाणवू । 'एवामेव ' इत्यादिक दार्टीतिकनी योजना पाठसिद्ध ज ( सुगमार्थ ज) छ । 'एत्थ णं' इत्यादि-आ द्वादशांग गणिपिटकने विपे अनंत भावो कहेवाय छे एवो संबंध जाणवो. तेमां' भवन्ति' एटले जे होय ते भाव एटले जीवादिक पदार्थो, आ पदार्थों जीव अने पुद्गळर्नु अनंतपणुं होवाथी अनंत छ. तथा अनंत अभावो कहेवाय छे, एटले के सर्वे पदार्थों अन्यरूपे करीने अछता (अभावरूपे) होवाथी ज अभावो पण अनंत छे केमके दरेक वस्तुतत्त्व स्वपरनी सत्तानो भाव अने अभाव ए बन्नेने आधीन होय छे (घटरूपी वस्तु जे ते स्व एटले पोतानी-घटनी सत्ता-होवापणारूप भावने आधीन छे, ते ज घटवस्तु परनी एटले पटनी सत्ताना अभावने आधीन छे.) ते आ प्रमाणेजीव जे ते जीवात्मा( जीवस्वरूप )वडे भावरूपे छे अने अजीवात्मावडे अभावरूपे छे. जो एम न होय तो (जीवमां) अजीवपणानी प्राप्ति थइ जाय. अन्य आचार्यों तो-"धर्मनी अपेक्षाए अनंत भावो अने अनंत अभावो वस्तु वस्तु प्रत्ये अस्तित्व अने नास्तित्ववडे प्रतिबद्ध ( संबंधवाळा) छे" एम व्याख्यान करे छे. तथा अनंत हेतुओ कहेवाय छे, तेमां जाणवाने इच्छेला विशिष्ट अर्थो( पदार्थो )ने जे 'हिनोति-गमयति '-प्राप्त करे-जणावे ते हेतु कहेवाय छे. ते हेतुओ वस्तुना अनंत धर्मो होवाथी अने तेनाथी ( हेतुथी) प्रतिबद्ध एवा धर्मवडे विशिष्ट वस्तुने जणावनार होवाथी अनंत छे. ॥२५॥