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________________ (जुदापणाए करीने) रहेलो छे ते वीजा, त्रीजा विगेरे कोइ पण श्लोकनी अपेक्षा राखतो नथी, एटले के दरेक श्लोकने छेडे तेनो अर्थ पूर्ण थाय छे तेथी ते वीजानी अपेक्षा राखता नथी. आ बावीश सूत्रो स्वसमय सूत्रनी परिपाटीए रहेलां आनो छे, तथा ए ज बावीश सूत्रो अच्छिन्नच्छेद नयवाळा आजीविक सूत्रनी परिपाटीए रहेलां छे, भावार्थ आ प्रमाणे छे-अहीं जे नय छेदवडे अच्छिन्न सूत्रने इच्छे छे ते अच्छिन्नच्छेद नय कहेवाय छे. जेम के 'धम्मो मंगलमुक्किहं ' इत्यादि श्लोक ज अर्थथकी ( अर्थने आश्रीने ) बीजा, त्रीजा विगेरे श्लोकनी अपेक्षा करनार छे अने वीजो, त्रीजो विगेरे श्लोको पहेला श्लोकनी अपेक्षा करे छे ए रीते परस्पर सर्व श्लोको अपेक्षावाळा होय छे एम समजवुं. आ बावीश सूत्रो आजीविक अने गोशालके प्रवर्तावेला पाखंडसूत्रनी परिपाटीए करीने अक्षररचनाना विभागवडे रहेला छे ( दरेक श्लोकमां रहेला अक्षरो जुदा जुदा छे, परस्पर संबंधवाळा नथी ) तो पण अर्थथी ( अर्थनी अपेक्षा) . तो परस्पर अपेक्षावाळा छे ज । ' इचेइयाई ' इत्यादि सूत्र. तेमां ' तिकनइयाई ति -त्रण नयना अभिप्राय ( अपेक्षा) वडे चिंतवाय छे. एवो अर्थ छे. अहीं जे त्रिराशिया कह्या ते आजीविक ज कहेवाय छे. (आ त्रिराशिक रोहगुप्तथी जुदा संभवे 'छे ) तथा ' इच्चेइयाई ति ' इत्यादि सूत्र, तेमां ' चउक्कनइयाई ति ' - चार नयना अभिप्रायथी चिंतवाय छे, एम भावार्थ जाणवो. ' एवमेव ' इत्यादि सूत्र. ए प्रमाणे चार वावीश मळीने अट्ठाशी सूत्र थाय छे. ' से त्तं सुत्ताई ति ' ( ते आसूत्र कहां ) ए निगमननुं वाक्य छे ॥ २ ॥ हवे ते पूर्वगत शुं छे ? ते कहेवाय छे—जेथी करीने तीर्थंकर भगवान तीर्थप्रवृत्तिने समये गणधरोने सर्व सूत्रोनो ४३
SR No.010536
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJethalal Haribhai
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1939
Total Pages681
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size44 MB
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